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प्रवचन-सारोद्धार
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४. विशिष्ट-देशना-लब्धि-सम्पन्न चार मुनि, तत्त्वज्ञ अनशनी मुनि को संवेग बढ़ाने वाली धर्म कथा
सुनावें।
५. अनशनी मुनि की अतिशय प्रभावना देखकर यदि कोई सर्वज्ञ-मत-द्वेषी वाद करने आये तो उसके साथ वाद करने में समर्थ चार साधु तैयार रहें।
६. प्रत्यनीक (विपक्षी, द्वेषी) के प्रवेश को रोकने के लिये चार सामर्थ्य सम्पन्न मुनि अग्र द्वार पर खड़े रहें।
७. परीषह से पीड़ित होकर यदि अनशनी भोजन माँगे तो परिचारक मुनि सर्वप्रथम उसकी परीक्षा करे कि कोई प्रत्यनीक देव तो उसके शरीर में नहीं बोल रहा है। इसका निश्चय करने हेतु सर्वप्रथम अनशनी से पूछे कि तुम कौन हो? गीतार्थ हो या अगीतार्थ? तुमने अनशन स्वीकार किया है या नहीं? अभी रात है या दिन? इन प्रश्नों के जवाब में यदि अनशनी सत्य बोले तब तो समझना कि वह देवता से अधिष्ठित नहीं है किन्तु क्षुधा परीषह से पीड़ित है। ऐसी स्थिति में उसकी समाधि टिकाने के लिए उसे आहार देना चाहिये। इससे वह भविष्य में परीषहों पर विजय प्राप्त कर सके। यदि भूख की वेदना से पीड़ित अनशनी को आहार न दिया गया तो सम्भव है कि वह आर्त्त-ध्यान में मरकर तिर्यंच या भवनपति देव में उत्पन्न होगा और जिनमत या साधुओं का द्वेषी बनकर उन्हें परेशान करेगा।
ऐसी परिस्थिति में आवश्यक है कि चार मनि अनशनी के योग्य आहार की गवेषणा करें। ८. चार मुनि अनशनी के देह का दाह शान्त करने हेतु जल की गवेषणा करें । ९. चार मुनि स्थंडिल परठें। १०. चार मुनि प्रस्रवण परजें। ११. चार मुनि आगन्तुकों के चित्त को चमत्कृत करने वाली मनोहर देशना देवें । १२. महाबलवान चार मुनियों में से उपद्रव की रक्षा हेतु प्रत्येक दिशा में एक-एक खड़ा रहे।
यदि अड़तालीस निर्यामक न मिलें तो सैंतालीस, इतने भी न मिले तो छियालीस, पैंतालीस, चवालीस...अन्त में अनशनी की परिचर्या में दो निर्यामक तो अवश्य होने ही चाहिये। एक अनशनी के पास बैठे और दूसरा आहार आदि की गवेषणा करे । परिचारक एक हो तो अनशन नहीं करना चाहिये, कारण इससे आत्मा एवं जिनाज्ञा का नाश होता है। ‘आत्मा त्यक्तः परं प्रवचनं' ॥ ६२९-६३५ ।।
(७२ द्वार:
शुभ-भावना
इरियासमिएसया जए उवेह भुंजेज्ज व पाणभोयणं । आयाणनिक्खेवदुगुंछ संजए समाहिए संजयए मणो वई ॥६३६ ॥ अहस्ससच्चे अणुवीय भासए जे कोह लोह भय मेव वज्जए।
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