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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३२९ 2:350020403930 एएसि तु पयाणं चउक्कगेणं गुणिज्जमाणाणं । निज्जामयाण संखा होइ जहासमयनिद्दिट्ठा ॥६३० ॥ उव्वत्तंति परावत्तयंति पडिवण्णअणसणं चउरो। तह चउरो अब्भंतर दुवारमूलंमि चिट्ठति ॥६३१ ॥ संथारयसंथरया चउरो चउरो कहिंति धम्मं से। चउरो य वाइणो अग्गदारमूले मुणिचउक्कं ॥६३२ ॥ चउरो भत्तं चउरो य पाणियं तदुचियं निहालंति । चउरो उच्चारं परिट्ठवंति चउरो य पासवणं ॥६३३ ॥ चउरो बाहिं धम्मं कहिंति चउरो य चउसुवि दिसासु। चिटुंति उवद्दवरक्खया सहसजोहिणो मुणिणो ॥६३४ ॥ ते सव्वाभावे ता कुज्जा एक्केक्कगेण ऊणा जा। तप्पासट्ठिय एगो जलाइअण्णेसओ बीओ ॥६३५ ॥ -गथार्थनिर्यामक मुनि-१. उद्वर्तन, २ द्वार, ३ संस्तारक, ४ कथक, ५ वादी, ६ अग्रद्वार, ७ गौचरी, ८ पानी, ९-१० लघुनीति-बड़ीनीति, ११ धर्मकथक, १२ दिशाओं में समर्थ । पूर्वोक्त १२ पदों में से प्रत्येक में ४-४ मुनि होने से १२४४ गुणा करने पर आगमनिर्दिष्ट गुणयुक्त निर्यामकों की संख्या आती है। अर्थात् कुल ४८ निर्यामक होते हैं ॥६२९-६३०॥ चार मुनि अनशनी का उद्वर्तन-परावर्तन करते हैं। चार मुनि भीतर के द्वार के पास बैठते हैं। चार संथारा करने वाले होते हैं। चार मुनि अनशनी को धर्मकथा सुनाते हैं। चार मुनि वादी एवं चार अग्र द्वार पर बैठते हैं। चार मुनि अनशनी की समाधि के लिये आहार आदि लाकर देते हैं। चार मुनि अनशनी के लिये पानी की गवेषणा करते हैं। चार मुनि स्थंडिल और चार मुनि मात्रा परठने वाले होते हैं। चार मुनि लोगों को धर्मोपदेश सुनाते हैं और चार मुनि चारों दिशाओं में एक-एक उपद्रव की रक्षा हेतु रहते हैं ।।६३१-६३४ ।। यदि ४८ निर्यामक न मिले तो एक-एक न्यून करते....करते अन्त में जघन्यत: दो निर्यामक तो अनशनी के लिये आवश्यक ही हैं। एक अनशनी के पास बैठने वाला तथा दूसरा जलादि की गवेषणा करने वाला ।।६३५ ।। -विवेचननिर्यामका: ग्लानप्रतिचारिण: = ग्लान अनशनी आदि की सेवा एवं वैयावच्च करने वाले निर्यामक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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