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ऐं नमः
- मन की बात
भारतीय चिन्तन की प्रमुख तीन धारायें हैं - वैदिक, जैन और बौद्ध । इन धाराओं में संस्कृति का वह अजोड़ अमृत प्रवाहित हो रहा है, जो मानव को अमरत्व प्रदान करता है। इसमें हमारे परम ज्ञानी तीर्थंकर भगवन्तों, तत्त्वदृष्टा ऋषि-मुनियों एवं प्रबुद्ध चिन्तकों ने वह अनमोल ज्ञान प्रस्तुत किया है जो मानव को स्वपर - समुन्नति के महान कर्त्तव्य कर्मों की प्रेरणा देता है, जो मानव जाति को सांस्कृतिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक आदर्शों से परिचित कराता है । वह अमृत इन तीनों परंपराओं के प्राचीन साहित्य में अथ - इति समुपलब्ध है ।
मन की बात
वैदिक परंपरा का मूलस्रोत वेद है जिसे वह ईश्वरवाणी के रूप में स्वीकार करती है । बौद्ध परंपरा के समग्र विचार व विश्वासों का मूल त्रिपिटक हैं जो भगवान बुद्ध की वाणी है। जैन परंपरा के मूलग्रंथ आगम हैं जो तीर्थंकर की वाणी है। इनमें भगवान महावीर के विचार, विश्वास व आचार का संपूर्ण संग्रह है।
प्रत्येक धर्म-परंपरा में धर्मग्रन्थ या शास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि उस धर्म के दार्शनिक सिद्धान्त और आचार व्यवस्था दोनों के लिए शास्त्र ही एक मात्र प्रमाण है । हिन्दु धर्म में वेद का, बौद्ध धर्म में त्रिपिटक का, पारसी धर्म में अवेस्ता का, ईसाई धर्म में बाइबिल का एवं इस्लाम धर्म में कुरान का जो स्थान है वही स्थान जैन धर्म में आगमों का है। फिर भी आगम साहित्य न तो वेद के समान अपौरुषेय है और न बाइबिल या कुरान के समान किसी पैगम्बर के द्वारा दिया गया ईश्वरीय सन्देश ही है, अपितु वह उन आर्हतों व ऋषियों की वाणी का संकलन है जिन्होंने अपनी साधना व घोर तपस्या द्वारा सत्य का साक्षात्कार किया था। जैनों के लिये आगम जिनवाणी है। आप्त वचन है। उनकी धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का आधार है। वर्तमान में इन आगमों में चाहे कितना भी परिवर्तन व परिवर्धन क्यों न हुआ हो, फिर भी वे जैनधर्म के प्रामाणिक दस्तावेज हैं ।
आगम साहित्य अंग व अंगबाह्य दो रूपों में विभक्त है । जिनदास महत्तर - रचित नन्दिचूर्णि तत्त्वार्थ- राजवार्तिक आदि के अनुसार अंग शास्त्र वे हैं जो अर्थ रूप में जिन - भाषित हैं तथा सूत्ररूप में गणधरों के द्वारा विरचित हैं । तात्पर्य यह है कि भगवान महावीर ने नामोल्लेखपूर्वक किसी भी आगम की रचना नहीं की। उन्होंने तो भव्यात्माओं के प्रतिबोधार्थ उपदेश दिया। उनके आत्म-कल्याण हेतु मार्गदर्शन किया। भगवान द्वारा समय-समय पर दिया गया उपदेश गणधर भगवन्तों ने अपनी स्मृति में रखकर सूत्रबद्ध कर लिया । गणधर भगवन्तों के द्वारा सूत्रबद्ध किया गया वही उपदेश अंगशास्त्र है ।
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अंगबाह्य वे हैं जो काल के प्रभाव से मन्दबुद्धि होते-जाते शिष्यों के हितार्थ अंगशास्त्रों के आधार पर स्थविरों द्वारा संकलित किये गये हैं । अंगशास्त्रों की संख्या नियत है पर अंगबाह्य शास्त्रों की कोई
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