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प्रवचन-सारोद्धार
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२७०वें द्वार में विभिन्न प्रकार की लब्धियों (विशिष्ट शक्तियों) का विवेचन प्रस्तुत किया गया है । २७१वें द्वार में छ: आन्तर और छ: बाह्य तपों के स्वरूप का विस्तृत विवेचन किया गया है। २७२वें द्वार में दस पातालकलशों के स्वरूप का विवेचन है। २७३वें द्वार में आहारक शरीर के स्वरूप का विवेचन किया गया है। २७४वें द्वार में अनार्य देशों का और २७५वें द्वार में आर्य देशों का विवेचन है। अन्तिम १६वाँ द्वार सिद्धों के इकत्तीस गुणों का विवरण प्रस्तुत करता है।
इस प्रकार यह विशालकाय कृति २७६ द्वारों (अध्यायों) में जैनदर्शन के २७६ विशिष्ट पक्षों के विवेचन के साथ में समाप्त होती है। यही कारण है कि इस कृति को जैनधर्मदर्शन का एक छोटा विश्वकोष कहा जा सकता है।
हमें यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता होती है कि प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ने जैन दर्शन के इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ को हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित करने का निश्चय किया है। इससे जन सामान्य और विद्वत् वर्ग दोनों का ही उपकार होगा, क्योंकि इसका हिन्दी भाषा में कोई भी अनुवाद उपलब्ध नहीं था।
परम विदुषी साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. ने इस विशालकाय ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करने का जो कठिनतर कार्य किया है, वह स्तुत्य तो है ही, साथ ही उनकी बहुश्रुतता का परिचायक भी है । ऐसे दुरूह प्राकृत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करना सहज नहीं था, यह उनके साहस का ही परिणाम है कि उन्होंने न केवल इस महाकार्य को हाथ में लिया, अपितु प्रामाणिकता के साथ इसे सम्पूर्ण भी किया। अनुवाद में उन्होंने मूल ग्रन्थ के साथ टीका को भी आधार बनाया है। इससे पाठकों को विषय को स्पष्ट रूप से समझने में सहायता मिलती है। अनुवाद सहज और सुगम है और सीधा मूल विषय को स्पर्श करता है। वस्तुत: यह पूज्या साध्वीजी का जैनविद्या के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अवदान है और इस हेतु वे हम सभी के साधुवाद की पात्र हैं। आशा है पाठकगण इस ग्रन्थ का अध्ययन-मनन कर पूज्या साध्वीजी के श्रम को सार्थक करेंगे।
यह पूज्या साध्वीवर्या श्रीहेमप्रभाश्री जी म.सा. का असीम अनुग्रह ही है कि उन्होंने इसकी भूमिका लिखने का न केवल मुझसे आग्रह किया, अपितु मेरी व्यस्तता के कारण दीर्घ अवधि तक इस हेतु प्रतीक्षा भी की। विलम्ब हेतु मैं पूज्या साध्वीजी एवं पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ।
रक्षाबन्धन (श्रावणी पूर्णिमा) विक्रम संवत् २०५५ दिनांक ८.८.१९९८
प्रो. सागरमल जैन पूर्व निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ
बाराणसी
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