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प्रवचन - सारोद्धार
एगवसहीए पणगं छव्वीहीओ य गामि कुव्वंति । दिवसे दिवसे अन्नं अडंति वीहीसु नियमेणं ॥६१७॥ पडिबद्धा इयरेऽवि य एक्केक्का ते जिणा य थेरा य । अत्यस्स उ देसम्म य असमत्ते तेसि पडिबंधो ॥ ६१८ ॥ लग्गाइसु तूरंते तो पडिवज्जित्तु खित्तबाहिठिया । गिण्हंति जं अगहियं तत्थ य गंतूण आयरिओ ॥६१९ ॥ तेसिं तयं पयच्छइ खेत्तं इंताण तेसिमे दोसा । वंदंतमवंदंते लोगंमि य होइ परिवाओ ॥ ६२० ॥ न तरेज्ज जई गंतुं आयरिओ ताहे एइ सो चेव । अंतरपल्लि पडिवसभ गामबहि अण्णवसहिं वा ॥६२१ ॥ तीए य अपरिभोगे ते वंदंते न वंदई सो उ । तं घेत्तु अपडिबद्धा ताहि जहिच्छाइ विहरति ॥ ६२२ ॥ जिणकप्पियावि तहियं किंचि तिगिच्छंपि ते न कारेंति । निप्पडिकम्मसरीरा अवि अच्छिमलंपि नऽवणिति ॥६२३ ॥ थेराणं नाणत्तं अतरंतं अप्पिणंति गच्छस्स । तेऽवि य से फासणं करेंति सव्वंपि परिकम्मं ॥६२४ ॥ एक्केक्कपडिग्गहगा सप्पाउरणा भवंति थेरा उ ।
जे पुण सिं जिणकप्पे भयएसिं वत्थपायाई ॥६२५ ॥ गणमाणओ जहण्णा तिण्णि गणा सयग्गसो य उक्कोसा । पुरिसपमाणे पनरस सहस्ससो चेव उक्कोसा ॥६२६ ॥ पडिवज्जमाणगा वा एक्काइ हवेज्ज ऊणपक्खेवे । होंति जहण्णा एए सयग्गसो चेव उक्कोसा ॥६२७ ॥ पुव्वपडिवन्नगाणवि उक्कोसजहण्णसो परीमाणं । कोडित्तं भणियं होइ अहालंदियाणं तु ॥ ६२८ ॥ -गाथार्थ
यथालंदिक कल्प—लंद अर्थात् काल, उसके उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य तीन भेद हैं। पानी से भीगा हुआ हाथ जितने समय में सूख जाता है उतनी समयावधि जघन्य काल है । पूर्व क्रोड़ वर्ष
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