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चारित्र
प्रश्न-
- परिहारविशुद्धिक आत्मा किस क्षेत्र व किस काल में होते हैं ?
उत्तर - क्षेत्रादि का निरूपण करने के लिए आगम ग्रन्थों में अनेक द्वार हैं। पर हम ग्रन्थ विस्तार
भय से शिष्यों के अनुग्रहार्थ कुछ ही द्वारों का निरूपण करेंगे । १. क्षेत्रद्वार
२. कालद्वार
जन्म व सद्भाव दोनों की अपेक्षा से ५ भरत व ५ ऐरवत में होते हैं ।
• जिनकल्पी की तरह पारिहारिकों का संहरण नहीं हो सकता अतः उनका अस्तित्व सभी कर्मभूमि या अकर्मभूमि में नहीं होता । तथाविध स्वभाव के कारण विदेह में भी इस कल्प का स्वीकार कोई नहीं करता ।
• सद्भाव अर्थात् जिस क्षेत्र में कल्प का स्वीकार किया जाये । जन्मत: अर्थात् जिस क्षेत्र में पारिहारिक का जन्म हो ।
३. तीर्थद्वार
४. पर्याय द्वार
अवसर्पिणी काल में जन्म की अपेक्षा 'परिहार - विशुद्ध' चारित्री तीसरे चौथे आरे में तथा सद्भाव की अपेक्षा पाँचवें आरे में भी होते हैं । उत्सर्पिणीकाल में जन्म की अपेक्षा दूसरे, तीसरे व चौथे आरे में तथा सद्भाव की अपेक्षा तीसरे व चौथे आरे में होते हैं ।
प्रतिभाग काल (नो उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी) में यह कल्प नहीं होता क्योंकि प्रतिभागकाल. महाविदेह में ही है और वहाँ इस कल्प को स्वीकार करने वाला कोई नहीं होता । निश्चित रूप से तीर्थंकर के शासन में ही यह कल्प स्वीकार किया जाता है । शासन की स्थापना से पूर्व या विच्छेद होने के बाद यह कल्प कोई नहीं स्वीकारता । जातिस्मरणादि के द्वारा भी इसका स्वीकार कोई नहीं करता ।
परिहारविशुद्ध संयमी का जघन्य गृहस्थ पर्याय २९ वर्ष तथा संयम पर्याय २० वर्ष का होना चाहिये । उत्कृष्ट से दोनों पर्याय देशोन पूर्वकरोड़ वर्ष के हैं 1
यहाँ सूत्र में इस कल्प को स्वीकार करने वाले की गृहस्थ पर्याय ३० वर्ष व संयम पर्याय १९ वर्ष का बताया है, वह असंगत प्रतीत होता है, क्योंकि कल्पभाष्य से विरोध आता है I कल्पभाष्य में गृहस्थ पर्यायं २९ वर्ष तथा दीक्षा पर्याय २० वर्ष ही बताया है I
अपूर्व आगम के अभ्यासी नहीं होते किन्तु स्वीकृत कल्प की उचित आराधना द्वारा कृतकृत्य बनते हैं । मन अशुभ में प्रवृत्त
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५. आगम द्वार
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द्वार ६९
परिहार विशुद्धि तप करने वाले मुनि का चारित्र भी तप विशेष द्वारा शुद्ध हो जाने से परिहारविशुद्धि चारित्र ही कहलाता
हैं ।
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