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________________ द्वार ६७ ३१४ समिओ नियमा गुत्तो, गुत्तो समियत्तणंमि भयणिज्जो। कुशलवयमुदीरंतो, जं वइगुत्तोवि समिओऽवि ।। (iii) कायगुप्ति - आगम-निषिद्ध चेष्टा का त्याग करना। देव-मनुष्य, तिर्यंच सम्बन्धी उपसर्ग एवं क्षुधा-पिपासा आदि परिषह की स्थिति में कायोत्सर्ग से विचलित न होना। योगनिरोध के समय स्थूल व सूक्ष्म सभी प्रकार की कायिक प्रवृत्ति का निरोध करना प्रथम कायगुप्ति है। वाचना देने या लेने हेतु, संदेह आदि निवारण के लिए उपयोगपूर्वक गुरु के पास जाना, शरीर, भूमि, संथारा आदि की उपयोगपूर्वक पडिलेहण करना, आगमविहित क्रिया पूर्वक, शयन आदि करना और भी योग्य, करणीय क्रियाओं में सम्यग् प्रवृत्ति करना दूसरी कायगुप्ति है ॥ ५९५ ॥ • अभिग्रह-प्रतिज्ञा विशेष । जैसे भगवान महावीर ने कौशांबी में प्रतिज्ञा ली थी। अभिग्रह चार प्रकार के हैं—(i) द्रव्यविषयक, (ii) क्षेत्रविषयक, (iii) काल विषयक और (iv) भावविषयक। (i) द्रव्यविषयक-सूपड़े के कोने में रखे हुए उड़द के बाकुले ही भिक्षा में ग्रहण करूँगा। (ii) क्षेत्रविषयक—एक पाँव देहली के अन्दर और एक पाँव देहली के बाहर, बेड़ियाँ पहनी हुई राजकन्या से ही भिक्षा ग्रहण करूँगा। (iii) कालविषयक-दो पोरिसी दिन बीतने के बाद ही भिक्षा ग्रहण करूँगा। समितियुक्त आत्मा निश्चित रूप से गुप्तिवाला होता है। किन्तु गुप्तात्मा में समिति वैकल्पिक है। कुशल वचन बोलने वाला गुप्ति और समिति दोनों से युक्त है। (iv) भावविषयक-मुण्डित, रोती हुई, दात्री से ही ग्रहण करूँगा। इस प्रकार के अभिग्रह के द्वारा भगवान महावीर ने ५ दिन न्यून छ: महीने के उपवास किये थे। करणसत्तरी का संक्षेप पूर्वोक्त बयालीस दोष पिण्ड, शय्या, वस्त्र और पात्र से सम्बन्धित हैं पर इन दोषों की अलग से विवक्षा न करके जिनसे सम्बन्धित वे दोष हैं मुख्य रूप से उन चार की ही विवक्षा की गई है। इससे करण के सत्तर भेद से अधिक भेद नहीं होते। . ४ पिण्डविशुद्धि के दोष + ५ समिति + १२ भावना + १२ प्रतिमा + ५ इन्द्रिय निरोध + २५ प्रतिलेखना + ३ गुप्ति + ४ अभिग्रह = ७० करणसप्तति । चरण-करण में अन्तर(i) प्रतिदिन आचरण करने योग्य ‘चरण' है, जैसे व्रतादि । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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