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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३१३ वसति प्रमार्जन - उपाश्रय जीवाकुल न बने इसलिये उसकी पडिलेहण करना अत्यावश्यक है। • शीतोष्णकाल में वसति पडिलेहण दो बार करना चाहिये। (i) प्राभातिक प्रतिलेखना करने के बाद ।। (ii) सन्ध्याकालीन पडिलेहण करने से पूर्व । • वर्षाकाल में वसति-पडिलेहण तीन बार करना चाहिये, क्योंकि वर्षा काल में जीवोत्पत्ति अधिक होती है। (i) प्राभातिक पडिलेहण करने के बाद । (ii) मध्याह्न में। (ii) सन्ध्याकालीन पडिलेहण से पूर्व । अपवाद वसति जीवाकुल हो तो अधिक बार भी पडिलेहण की जा सकती है। अधिक बार पडिलेहण करते समय जीवों का संघट्टा बहुत ही अधिक होता हो तो वसति या गाँव छोड़ दे ॥ ५९४ ॥ गुप्ति - अशुभ मन-वचन काया के व्यापार का त्याग, अत्यावश्यक हो तो शुभ में प्रवृत्ति करना गुप्ति है। इसके तीन प्रकार हैं:(i) मनो गुप्ति - १. आर्त्त-रौद्रध्यान को पैदा करने वाली कल्पनाओं का त्याग। २. आगमानुसारी, परलोक-हितकारी, धर्मध्यान बढ़ाने वाली ___ मानसिक वृत्ति । ३. योग-निरोध-कालीन आत्मरमणता। (ii) वचनगुप्ति मुँह बनाना, आँख-भौं से इशारा करना, अंगुलियाँ ऊपर नीचे करना, खाँसी-हुँकार करना, कंकर फैंकना इत्यादि अर्थसूचक चेष्टाओं के त्यागपूर्वक मौन रहना। मौन की स्थिति में संकेत आदि के द्वारा अपने अभिप्राय को सूचित करना मौनव्रत को निष्फल करना है। मुँहपत्ति का उपयोग रखते हुए लोक व आगम से अविरुद्ध वाचना देना, स्व-पर का संशय निवारण करने के लिये बोलना या उपदेश आदि देना। उपयोग एवं विवेकपूर्वक बोलना भी संयमरूप होने से वचन गुप्ति है। प्रश्न-यदि उपयोग–विवेक पूर्वक बोलना ही वचनगुप्ति है तो भाषा-समिति और इसमें क्या अन्तर है? उत्तर-गुप्ति निवृत्ति और प्रवृत्ति दोनों रूप हैं, जबकि समिति मात्र प्रवृत्ति रूप है। वचन गुप्ति, वाणी का निरोध और सम्यग् वचन में प्रवृत्ति दोनों रूप है किन्तु भाषा-समिति, सम्यग् वचन में प्रवृत्ति करना मात्र है, अत: समिति और गुप्ति में भेद है। कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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