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________________ ३१२ द्वार ६७ 2010050000000000000000000444455084430401140455446001144- -01-500-444150010-185040sd प्रतिलेखना-वस्त्र-उपधि आदि का विधिपूर्वक निरीक्षण करना। प्रतिलेखना (पडिलेहण) तीन बार होती अन्यमते १. प्राभातिक, २. उग्घाड़ा पौरिसी के समय व ३. सन्ध्या कालीन । १.प्राभातिक -- १ मुहपत्ति, २ चोलपट्टा, ३, ४ व ५ तीन ओढ़ने के वस्त्र (१ ऊनी, २ सूती), ६-७ दो ओघारिया (निशीथिया), ८ रजोहरण, ९ संथारा, १० उत्तरपट्टा- इन दश वस्त्रों की पडिलेहणा सवेरे इस प्रकार करे कि पडिलेहण के बाद सूर्योदय हो। वसति की पडिलेहणा सूर्योदय के बाद करना। पूर्वोक्त १० तथा ११वें दण्ड की भी प्रभात में पडिलेहन करना ऐसा निशीथचूर्णि व कल्पचूर्णि में कहा है। यहाँ गाथा का उद्देश्य प्रतिलेखन करने योग्य उपकरणों को बताना मात्र है, नहीं कि प्रतिलेखना का क्रम बताना । क्योंकि प्रतिलेखना का क्रम आगम में भिन्न प्रकार से बताया है। निशीथचूर्णि में कहा है कि प्राभातिक प्रतिलेखना में मुहपत्ति, रजोहरण, अन्दर का ओघारिया, बाहर का ओघारिया, चोलपट्टा, तीन कल्प, उत्तरपट्टा, संथारिया व दंडा क्रमश: पडिलेहे। यह क्रम है अन्यथा उत्क्रम होगा। पहले आचार्य आदि रत्नाधिक की उपधि की पडिलेहण करे बाद में अनशनी, ग्लान और शैक्षक की करे ॥ ५९०-५९१ ॥ २. उद्घाट पोरिसी चौथाई भाग न्यून एक प्रहर, आगम की भाषा में उग्घाडा पोरिसी कहलाता है। इस समय सप्तविध पात्र निर्योग (पात्र व पात्र सम्बन्धी उपकरण) की पडिलेहणा होती है। मुहपत्ति पडिलेहण करने के बाद निम्न सात की पडिलेहणा करे । (i) गुच्छा, (ii) पड़ला, (iii) पात्रकेसरिका, (iv) पात्रबंध, (v) रजस्राण, (vi) पात्र, (vii) पात्रस्थापन ॥ ५९२ ॥ ३ संध्या पडिलेहण दिन के तीन प्रहर बीतने के बाद निम्न चौदह उपकरणों की प्रतिलेखना करना। (i) मुहपत्ति, (ii) चोलपट्टा, (iii) गुच्छा, (iv) पूंजणी, (v) पात्रबंध, (vi) पड़ला, (vii) रजस्त्राण, (viii) पात्रस्थापना (ix) मात्रक, (x) पात्र, (xi) रजोहरण (बाहर का ओघारिया पहले पडिलेहणा) (xii.....xiv) तीन कल्प (कमली, दो चद्दर) । औपग्रहिक उपधि की पडिलेहण भी इसी समय करना है। प्रतिलेखना की विधि विस्तार भय से यहाँ नहीं दी है। वह ओघनियुक्ति, पंचवस्तुक आदि ग्रन्थों से ज्ञातव्य है ॥ ५९३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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