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प्रवचन - सारोद्धार
लाभ
जैसे
दोष
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किनारे पर कायोत्सर्ग ध्यान में खड़ा रहे। अपलक दृष्टि, एक ही वस्तु में स्थिरनयन वाला तथा इन्द्रियनिग्रही हो । पाँवों की जिनमुद्रा व हाथ की कायोत्सर्गमुद्रा के साथ शारीरिक स्थिति प्रतिमा पूर्ण होने तक एकसी रहनी चाहिये ।
इस प्रतिमा का विधिपूर्वक वहन करने वाला आत्मा अनेकविध लब्धियों का स्वामी बनता है । जैसे
(i) पागलपन, (ii) रोग व (iii) धर्मभ्रंश
बारहवीं प्रतिमा चार रात व तीन दिन की है, कारण प्रतिमा की एक रात बीतने के बाद अट्ठम किया जाता है ।। ५८६-५८८ ।। इन्द्रिय- संयम
(i) अवधिज्ञान, (ii) मनपर्यवज्ञान व (iii) केवल ज्ञान
इस प्रतिमा की विराधना करने वाला आत्मा अनेकविध दोष का भागी बनता है । जैसे
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इन्द्रियों के शुभाशुभ विषयों में राग-द्वेष न करना ।
५ विषय
स्पर्श
रस
५ इन्द्रियाँ
१ स्पर्शेन्दिय
२ रसनेन्द्रिय
१३ घ्राणेन्द्रिय
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=
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-
गन्ध
रूप
४ चक्षुरिन्द्रिय ५ श्रोत्रेन्द्रिय
शब्द
इन्द्रिय-संयम के अभाव में, विषयासक्त जीव हिरण आदि की तरह दुःख का भागी बनता है ।
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=
१ शब्द विषय में आसक्ति के कारण हिरण ।
२ रूप विषय में आसक्ति के कारण पतंग |
३ गन्ध विषय में आसक्ति के कारण भ्रमर ।
४ रस विषय में आसक्ति के कारण मत्स्य और
५ स्पर्श विषय में आसक्ति के कारण हाथी, मृत्यु को प्राप्त करते हैं ।
एक-एक इन्द्रिय के विषय में आसक्त जीवों की यह दशा है तो पाँचों इन्द्रियों में आसक्त जीव की दशा का तो पूछना ही क्या है ?
घोड़े की तरह चंचल व दुर्दमनीय इन्द्रियाँ जीव को अन्धकारपूर्ण व दुःखद उन्मार्ग में बलात् खींचकर ले जाती हैं अतः बुद्धिमान आत्मा को अपनी इन्द्रियाँ वश में रखनी चाहिये, क्योंकि इन्द्रियजय ही इस लोक व परलोक में कल्याणकारी है ॥ ५८९ ॥
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