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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३०७ • प्रतिमा कालमर्यादायुक्त मुनियों की प्रतिज्ञा विशेष को प्रतिमा कहते हैं। यह बारह प्रकार की है। पहली एक मास की, दूसरी दो मास की यावत् सातवी सात मास की, तत्पश्चात् आठवीं, नौवीं, दशमी सात-सात अहोरात्र की। ग्यारहवीं प्रतिमा एक अहोरात्र प्रमाण । बारहवीं प्रतिमा एक रात्रि की ।। ५७४ ।। प्रतिमा धारक१. संहननयुत = प्रथम के तीन संघयण में से किसी एक संघयण वाला। ऐसा आत्मा परिषह शान्तिपूर्वक सहन कर सकता है। २. धृतियुत = चित्त की स्वस्थता धृति है। धृतियुक्त आत्मा रति-अरति की बाधा से विचलित नहीं बनता। ३. महासत्त्व = अनुकूलता, प्रतिकूलता में सुखी-दुःखी नहीं बनता। ४. भावितात्मा = जिसका हृदय सत्त्वादि पाँच भावनाओं से आगम के अनुरूप ओतप्रोत हो अथवा प्रतिमा के अनुष्ठान से भावित हो, ऐसा आत्मा साहसपूर्वक साधना कर सकता हैं (सत्त्वादि पाँच भावनाओं का स्वरूप ६० वें द्वार में द्रष्टव्य है)। ५. गुरु-अनुमत = जिसने प्रतिमा वहन करने की गुरु से आज्ञा प्राप्त कर ली हो। • गुरु या आचार्य स्वयं प्रतिमा वहन करने वाले हों तो वे अपने स्थान पर प्रतिष्ठित आचार्य ___ या गच्छ की अनुमति प्राप्त करें। ६. परिकर्म = प्रतिमा स्वीकार करने से पूर्व गच्छ में रहकर उनके योग्य क्षमता अर्जित करना। परिकर्म दो प्रकार का है-(i) आहार विषयक (ii) उपधि विषयक (i) आहार परिकर्म : पिण्डैषणा के सात प्रकारों में से प्रथम दो प्रकारों को छोड़कर शेष पाँच में से किसी एक प्रकार से अलेपकृत आहार और दूसरे प्रकार से पानी लेना। (ii) उपधिपरिकर्म : उपधिग्रहण की चार एषणायें हैं१. भिखारी, पाखंडी या गृहस्थ को देने के लिये कल्पित सूती-ऊनी या रेशमी वस्त्र ही ग्रहण करूँगा। २. प्रेक्षित वस्त्र ही ग्रहण करूँगा। ३. गृहस्थ द्वारा अपने उपयोग में लिया हुआ वस्त्र ही ग्रहण करूँगा। ४. बाहर फेंकने योग्य सर्वथा जीर्ण-शीर्ण वस्त्र ही ग्रहण करूँगा। प्रतिमा का अभ्यासी (परिकर्म करने वाला) अन्तिम दो एषणा से वस्त्र ग्रहण करता है । वस्त्र लेना अति आवश्यक हो और नियम के अनुसार वस्त्र न मिले तो अन्य एषणा से भी ग्रहण किया जा सकता है किन्तु अपने नियमानुसार वस्त्र मिल जाने पर पूर्वगृहीत वस्त्र का तुरन्त त्याग कर देना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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