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द्वार ६७
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बाद में मालूम पड़े कि आहार दूषित है, ऐसी स्थिति में आहार के बिना चल सकता हो, तो सारा आहार विधिपूर्वक परठ दें अन्यथा जितना दूषित हो उतना परठे। यदि दूषित, अदूषित को जानना सम्भव न हो अथवा अलग करना सम्भव न हो, तो सारा का सारा आहार परठ दें। विशोधिकोटि के दोष से दूषित होने के कारण यहाँ पात्र को तीन बार धोने की आवश्यकता नहीं है ।। ५७० ॥
समिति = उपयोगपूर्वक प्रवृत्ति, सम्यक् प्रवृत्ति समिति है। यह निम्न प्रवृत्तियों की आगमिक संज्ञा है।
१. ईर्यासमिति = ईर्या = गति, उपयोगपूर्वक गति करना। प्राणिमात्र को अभयदान देने में निपुण मुनि को आवश्यक कारणों से बाहर जाना पड़े तो प्रचलित, सूर्य की तप्त किरणों से तप्त तथा जीवरहित मार्ग से स्व, पर की रक्षा के लिये आगे साढ़े तीन हाथ भूमि को देखते हुए गति करे । दशवैकालिक सूत्र में कहा है-अपने पाँव से आगे साढ़े तीन हाथ भूमि को देखते हुए मुनि चले। बीज आदि वनस्पति, बे इन्द्रिय आदि त्रस जीव, सचित्त जल व सचित्त पृथ्वी आदि की रक्षा करते हए गति करे। गर्त, ऊँची-नीची धरती, लूंठ, दलदल आदि का त्याग करके गमन करे । यदि अन्य मार्ग हो तो जलादि पर रखे हुए पाटिये...पत्थर आदि पर भी न चले।
उपयोगपूर्वक गति करते हुए कदाचित् जीव हिंसा हो जाये तो भी पाप बंधन नहीं होता। किन्तु, उपयोग न रखने पर जीव हिंसा न हो तो भी कर्म बंधन होता है। जहाँ प्रमाद है, वहाँ कर्म बंध है। जहाँ प्रमाद नहीं है, वहाँ कर्म बंध भी नहीं है।
___ “मुनि ईयासमितिपूर्वक पाँव रखता है फिर भी कोई जीव मर जाये तो उसे उसका पाप नहीं लगता क्योंकि उसका भाव शुद्ध है।" ऐसा आगम में कहा है। - प्रवचनसार में कहा है कि-जीव मरे या न मरे अनुपयोगी को निश्चय से हिंसाजन्य पाप लगता है। किन्तु उपयोगी, समित साधु को हिंसाजन्य पापबंध नहीं होता।
२. भाषासमिति–वाक्यशुद्धि अध्ययन में बताई गई सावद्यभाषा तथा धूर्त, कामुक, मांसाहारी, चोर, चार्वाक आदि की भाषा का त्याग करते हुए सर्वजन-हितकारी, अल्प किन्तु अर्थयुक्त और असंदिग्ध भाषा बोलना।
३. एषणा समिति—दोषरहित अन्न-पानी, रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि औधिक उपधि, शय्या, पीठफलक, चर्म, दण्ड आदि औपग्रहिक उपधि को ग्रहण करना।
४. आदान निक्षेप समिति—आसन, वस्त्र-पात्र, दण्ड आदि को दृष्टि से देखकर उपयोगपूर्वक रजोहरण आदि से प्रमार्जित कर ग्रहण करना तथा उन्हें प्रतिलेखित-प्रमार्जित भूमि पर रखना । जो अनुपयोग से प्रतिलेखना, प्रमार्जना करता है, वह समिति युक्त नहीं होता।
• प्रतिलेखन करते समय बातचीत करना । • प्रतिलेखन करते समय पच्चक्खाण देना। • प्रतिलेखन करते समय वाचना लेना या देना।
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