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________________ २९८ ९. लिप्त दोष अपवाद रस- लोलुपता, लिप्त हाथ धोने से पश्चात्कर्म आदि अनेक दोष । साधु को उत्सर्गत: वाल, चना, भात आदि अलेपकृत भिक्षा ही लेना कल्पता है । किन्तु स्वाध्याय आदि पुष्ट कारणों से पकृत भिक्षा भी साधु ले सकते हैं। 1 भिक्षा लेपकृत है तो दाता का हाथ तथा पात्र संसृष्ट- असंसृष्ट दोनों तरह का होता है । भिक्षा सावशेष और निरवशेष दोनों तरह की होती है अतः संसृष्ट- असंसृष्ट हाथ व पात्र तथा सावशेष - निरवशेष भिक्षा इनके योग से कुल आठ भांगे बनते हैं— संसृष्ट = खरड़ा हुआ। सावशेष = देने के बाद बचा हुआ द्रव्य । निरवशेष देने के बाद कुछ भी न बचा हो, वह द्रव्य निरवशेष है । संसृष्ट हाथ संसृष्ट भाजन, सावशेष द्रव्य । संसृष्ट हाथ संसृष्ट भाजन, निरवशेष द्रव्य | संसृष्ट हाथ असंसृष्ट भाजन, सावशेष द्रव्य । संसृष्ट हाथ असंसृष्ट भाजन, निरवशेष द्रव्य । असंसृष्ट हाथ संसृष्ट भाजन, सावशेष द्रव्य । असंसृष्ट हाथ संसृष्ट भाजन, निरवशेष द्रव्य । असंसृष्ट हाथ असंसृष्ट भाजन, सावशेष द्रव्य । असंसृष्ट हाथ असंसृष्ट भाजन, निरवशेष द्रव्य । १. २. ३. ४. = द्वार ६७ दूध-दही, ओसामण आदि लेपकृत द्रव्य उत्सर्गत साधु को नहीं लेना चाहिये । Jain Education International ५. ६. ७. ८. प्रथम, तृतीय, पंचम और सप्तम भांगों में भिक्षा ग्रहण करना कल्पता है, क्योंकि यहाँ सावशेष होने से हाथ और पात्र लिप्त होने पर भी धोने की सम्भावना नहीं रहती, कारण दूसरों को भोजन परोसा जा सकता है। जिन भांगों में द्रव्य निरवशेष है, वहाँ साधु को दान देने के पश्चात् दात्री निश्चित रूप से हाथ और पात्र दोनों का प्रक्षालन करेगी। अतः द्वितीय, चतुर्थ, षष्ठ और अष्टम भांगों में द्रव्य निरवशेष होने से भिक्षा लेना नहीं कल्पता । १०. छर्दित भिक्षा देते समय पदार्थ का नीचे गिरना छर्दित है । गिरने वाला और जिसमें गिरता है वे दोनों ही पदार्थ तीन प्रकार के हैं- सचित्त, अचित्त व मिश्र । जैसे सचित्त का सचित्त में गिरना, सचित्त का अचित्त में गिरना व सचित्त का मिश्र में गिरना । इस प्रकार अचित्त व मिश्र का समझना । इन भांगों में से जहाँ आधारभूत आधेयभूत पदार्थ मिश्र हैं उन भांगों का सचित्त में ही अन्तर्भाव हो जाने से आधार, आधेयभूत सचित्त व अचित्त द्रव्य के संयोग से केवल चार भांगे ही बनते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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