________________
प्रवचन-सारोद्धार
२९७
की ओर से। (i) ऊपर से-छत के पाट, पट्टी आदि के गिरने की आशंका। (ii) नीचे से—साँप, बिच्छु, कांटे आदि का भय । (iii) तिर्यक् से-गाय, बैल आदि का भय। इन तीनों भय में से किसी एक भी भय की सम्भावना हो तो
मुनि को भिक्षा लेना नहीं कल्पता। दोष
- मृत्यु आदि। अपवाद
- नहीं है। ७. उन्मिश्र
सचित्त मिश्रित भिक्षा देना। जैसे—किसी गृहस्थ के घर मुनि गौचरी के लिये आये किन्तु देने योग्य वस्तु अल्प होने से गृहस्थ लज्जावश देयवस्तु में करौंदे, दाडिम के दाने आदि मिलाकर मुनि को दे। अथवा दो वस्तु अलग-अलग देने में देर लगेगी, मिश्रित दो वस्तुयें अधिक स्वादिष्ट होगी, मुनियों का सचित्त भक्षण का नियम भंग हो, इस प्रकार लज्जा, उत्सुकता, भक्ति, प्रद्वेष अथवा अनाभोग से कल्प्य-अकल्प्य को मिलाकर मुनि को
वहोराना। उन्मिश्र और संहत में अन्तर–कल्प्य और अकल्प्य दोनों को मिलाना उन्मिश्र है तथा भाजनस्थ अकल्प्य वस्तु को अन्यत्र डालकर उसमें कल्प्य वस्तु लेकर भिक्षा देना संहृत है। ८. अपरिणत
- जो वस्तु अचित्त न बनी हो, जैसे कटे हुए फल, रस आदि ।
यह दो प्रकार का है-(i) द्रव्यत: और (ii) भावत: । (i) द्रव्यत: अपरिणत - स्वरूपत: सचित्त वस्तु जैसे पृथ्वीकाय आदि फलादि । किन्तु जो
पृथ्वीकाय आदि जीवरहित हैं, वे द्रव्यत: परिणत है। पूर्वोक्त दोनों ही अपरिणत, दाता और ग्रहीता के भेद से दो-दो प्रकार के हैं। यदि सचित्त वस्तु दाता से सम्बन्धित है तो दातृविषयक द्रव्यत: अपरिणत है और ग्रहणकर्ता से सम्बन्धित है तो ग्रहीत विषयक द्रव्यत: अपरिणत है। दातृ विषयक भावत: अपरिणत - ऐसी वस्तु जो दो व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों के मालिकी की
हो, पर जिसे देने का भाव एक का ही हो। । ग्रहीतृ विषयक भावत: अपरिणत - ग्रहणकर्ता मुनिओं में से किसी एक को असंमत देय वस्तु ।
(अशुद्ध की आशंका से)। साधारण अनिसृष्ट में दाता परोक्ष हैं, किन्तु दातृ-भाव अपरिणत में दाता सम्मुख है। पहले में परोक्ष दाता की असहमति है और प्रस्तुत में प्रत्यक्ष दाता की असहमति है। यही इन दोनों का भेद है।
- शंकित होने से अग्राह्य, कलह आदि । '
दोष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org