________________
प्रवचन-सारोद्धार
२९३
214000000000000000000000000
:
2100000102016सानासपालमा०००००सम्पादनावरकर
अपवाद
९.उन्मत्त
जिससे साधु या पात्र गन्दे हों, लोग निन्दा करें कि 'ये मुनि कितने घृणित हैं कि शराबी से भी आहार लेते हैं।' कदाचित् कोई मत्त व्यक्ति साधु से रुष्ट होकर कहे कि तूं यहाँ क्यों आया
और उन्हें मारने दौड़े। भद्र प्रकृति वाला हो, नशे में धूत न हो, अन्य कोई गृहस्थ न
हो तो उसके हाथ से भिक्षा लेना कल्पता है। - दो प्रकार का है—१. गर्व से उन्मत्त, २. भूतादि से गृहीत होने
के कारण उन्मत्त । सामान्यत: दोनों से लेना नहीं कल्पता। - वमन को छोड़कर शेष दोष मत्त की तरह समझना। - मत्त की तरह समझना। - हाथ के अभाव में शरीर की शुद्धि नहीं कर सकता, अत: ऐसे
व्यक्ति से भिक्षा लेना नहीं कल्पता। -- अशुचि होने से लोक निन्दा, हाथ के अभाव में देने में बड़ा कष्ट
हो, पात्र गिरे, फूटे, वस्तु नीचे गिरे, जिससे जीवों की हिंसा हो। - अन्य गृहस्थ न हो और वह यतना से दे सके तो लेना कल्पता
दोष अपवाद १०. लूला
दोष
अपवाद
११. लंगड़ा दोष
अपवाद
--- खंडित पाँव वाले से भिक्षा लेना नहीं कल्पता। - पूर्वोक्त दोष तथा भिक्षा देने के लिए चलने का प्रयास करे तो
गिरने की सम्भावना, गिरे तो कीड़ी आदि जीवों की हिंसा। - खण्डित पाँव वाला व्यक्ति यथास्थान बैठा ही भिक्षा दे तथा
वहाँ अन्य गृहस्थ न हो तो उससे भिक्षा लेना कल्पता है। - कुष्ठी, जिसके व्रण झरते हों उससे भिक्षा लेना नहीं कल्पता। - उसका श्वास, स्पर्श, मवाद, पसीना, मैल आदि लगने से मुनि
को कोढ़ होने का भय रहता है, क्योंकि यह संक्रामक है।
१२. कोढ़ी दोष
अपवाद
- जिसके शरीर पर केवल सफेद दाग रूप कोढ़ हो उसके हाथ
का यदि वहाँ कोई अन्य गृहस्थ न हो तो लेना कल्पता है,
अन्यथा नहीं। - जिसके हाथ पैर बंधे हुए हों, ऐसे व्यक्ति से भिक्षा लेना नहीं
कल्पता।
१३. बंधनबद्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org