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द्वार ६७
४. कंपमान
दोष
अपवाद
५. ज्वरित
के शाप के कारण नपुंसक हो तो अप्रतिसेवी होने से उससे भिक्षा लेना कल्पता है। अप्रतिसेवी = दुराचार सेवन न करने
वाला। - जिसका शरीर, अवस्था या रोगादि के कारण काँपता हो, उससे
भिक्षा लेना नहीं कल्पता। – देते समय वस्तु नीचे गिर जाये, पात्र से बाहर भिक्षा डाले, हाथ
से भोजन पात्र गिर जाने से साधु का पात्र फूटे। - पात्र को मजबूती से पकड़ा हुआ हो, अन्य द्वारा पकड़ कर भिक्षा
दिलाई जाती हो तो लेना कल्पता है। - जिसे बुखार, एकान्तरा आदि आता हो। – पूर्वोक्त (कंपमान के) दोष लगते हैं तथा ज्वर संक्रामक हो तो
साधु को भी बुखार आने की सम्भावना रहती है तथा लोग निन्दा करे कि 'ये मुनिलोग कैसे आहारलिप्सु हैं कि बीमार को भी नहीं छोड़ते।"
असंक्रामक बुखार हो तो यतनापूर्वक भिक्षा दे सकता है। - अंधे से भी भिक्षा ग्रहण न करे। - लोकनिन्दा-अंधा व्यक्ति नहीं देखने के कारण जीव हिंसा करे,
ठोकर खाकर गिरे, पात्र फूटे, देते समय वस्तु बाहर पड़े। - पुत्रादि हाथ पकड़कर यदि उससे भिक्षा दिलायें तो लेना कल्पता
दोष
अपवाद ६. अंध
दोष
अपवाद
७. बाल
अपवाद
- आठ वर्ष से कम उम्र का, जो देने का प्रमाण न जानता हो, ऐसे ___बालक से भिक्षा ग्रहण करना नहीं कल्पता । - लोग निन्दा करें कि ये साधु नहीं लुटेरे हैं, बड़ों की अनुपस्थिति में बच्चों से मन चाहे जितना आहार लेते हैं। इससे माता आदि को साधु के प्रति द्वेष होने की संभावना रहती है। बाहर जाते समय बडों ने बालक को कहा हो कि हमारे जाने के बाद साधु पधारे तो इतना-इतना आहारादि दे देना अथवा न कहने पर भी बालक थोड़ा सा दे तो लेना कल्पता है। थोड़ा
सा देने से माता आदि को साधु के प्रति द्वेष नहीं होता। - नशा किये हुए व्यक्ति से गौचरी लेना नहीं कल्पता। - नशे में बेभान होने से साधु से लिपटे, पात्र फोड़े, वमन करे,
८.मत्त
तोष
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