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प्रवचन - सारोद्धार
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अनंतर संहत मुनि के लिए सर्वथा अग्राह्य है । किन्तु परंपर सचित्त संहृत' में 'संघट्ट दोष' टल सकता हो तो यतनापूर्वक ग्राह्य 1 ६. दायक
१. स्थविर
दोष
अपवाद
२. अप्रभु
दोष
अपवाद
३. नपुंसक
दोष
अपवाद
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दायक = दाता । इसके उनतीस भेद हैं- १. स्थविर, २. अप्रभु, ३. नपुंसक, ४. कंपमान, ५. ज्वरी, ६. अंध, ७. बाल, ८. मत्त, ९. उन्मत्त, १०. लूला, ११. लंगड़ा, १२. कोढ़ी, १३. बंधनबद्ध, १४. पादुका पहना हुआ, १५. धान्य खांडती, १६. पीसती, १७. अनाज भूंजती, १८. चरखा कातती, १९ कपास लोढ़ती, २०. कपास अलग करती, २१. रुई पींजती, २२. अनाज आदि दलती, २३. दही का मन्थन करती, २४. भोजन करती, २५. गर्भिणी, २६. बालवत्सा, २७. छःकाय जीवों का संघट्टा करती, २८. छ: काय जीवों का घात करती, २९. संभावित भयवाली ।
सत्तर वर्ष (अन्यमतानुसार साठ वर्ष) के ऊपर की आयु वाला स्थविर कहलाता है । इसके हाथ से सामान्यतः भिक्षा लेना नहीं
कल्पता ।
मुँह से लाल टपकती हो तो भिक्षा में पड़े, लोग घृणा करें 1 हाथ काँपने से पात्र नीचे गिरे, जिससे जीवों की हिंसा हो, कमजोर हो तो स्वयं भी गिरे ।
जिसका शरीर सशक्त हो, अथवा दूसरों से पकड़ा हुआ हो ऐसे स्थविर के हाथ से भिक्षा लेना कल्पता है ।
प्राय: करके वृद्ध होने के बाद 'स्वामित्व' हट जाता है । जिसने अपना स्वामित्व दूसरों को सौंप दिया हो, ऐसे वृद्ध के हाथ से भिक्षा लेना नहीं कल्पता ।
जिसे स्वामी बनाया हो, सम्भव है उसे द्वेष हो जाये कि अब भिक्षा देने का इन्हें अधिकार ही क्या है ?
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वृद्ध यदि स्वामी हो, शक्ति संपन्न हो तो लेना कल्पता है नपुंसक के हाथ से भिक्षा ग्रहण करना नहीं कल्पता । · अतिपरिचित होने से, नपुंसक को अथवा साधु को वेदोदय हो, जिससे वे परस्पर एक-दूसरे को आलिंगन, चुंबन आदि करे । इससे दोनों के कर्मबंधन । लोकनिन्दा - “ये मुनि ऐसे अध लोगों के हाथ से भिक्षा लेते हैं ।"
यदि वर्धित, चिप्पित, मंत्रोपहत लिंग वाला या ऋषि देव आदि
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