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द्वार ६७
दोष
अपवाद
- देने वाले को पीड़ा होती है, उसके हाथ से भिक्षा लेने से लोगों
को घृणा होती है। - जिसके हाथ बंधे हुए हैं, उससे भिक्षा लेना सर्वथा अकल्प्य है।
इसमें कोई अपवाद नहीं है। जिसके पाँव बंधे हुए हों, यदि उसे चलने में कष्ट न हो तो उसके हाथ से भिक्षा ग्रहण करना कल्पता है। किन्तु जो चलने में असमर्थ हो वह बैठे-बैठे भिक्षा दे तो
ही साधु ले सकता है। वहाँ कोई अन्य गृहस्थ नहीं होना चाहिये। १४. पादुका पहना हुआ – पादुका = लकड़ी की खड़ाउ पहने हुए व्यक्ति से भिक्षा न
ले।
दोष
- भिक्षा देने के लिए चलते हुए कदाचित् पाँवों का सन्तुलन न
रहे तो दाता गिर सकता है। चलते हुए जीव विराधना करता
अपवाद
१५. खांडती दोष
अपवाद
- पादुकारूढ़ दाता यदि स्थान पर खड़ा ही भिक्षा दे तो लेना
कल्पता है। - अनाज खांडती हुई भिक्षा दे तो अकल्प्य । - सचित्त का संघट्टा होता है। भिक्षा देने से पूर्व और पश्चात् हाथ
आदि धोने से दोष। - खांडने के लिए मूशल उठाया हो किन्तु अभी ऊखल में नहीं
डाला हो, इतने में मुनि को आये हुए देखकर मूशल को उपयोगपूर्वक कोने में रखकर दात्री वहोरावे तो लेना कल्पता है। - अनाज वगैरह सचित्त वस्तु पीसती हुई दात्री भिक्षा दे तो मुनि
को ग्रहण करना नहीं कल्पता। - ‘संघट्टा' लगे, हाथ आदि धोने से अप्काय जीवों की विराधना
१६. पीसती
दोष
हो।
अपवाद
१७. भूजती
दोष
- साधु के आने पर पीसने की क्रिया पूर्ण हो गई हो या अचित्त ___वस्तु पीस रही हो तो उसके हाथ से भिक्षा लेना कल्पता है। - चने आदि पूंजती हुई दात्री से भिक्षा लेना नहीं कल्पता। - भिक्षा देने में समय लगने से कढ़ाई में डाले हुए चने आदि
जल जाये, इससे दाता के मन में साधु के प्रति अरुचि, द्वेष पैदा
हो। - कढ़ाई में डाले हुए चने आदि पूंजकर नीचे ले लिये हों, दूसरे
अपवाद
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