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द्वार ६७
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- (i) पुर:कर्म-भिक्षा देने से पूर्व साधु के निमित्त हाथ आदि
धोना। (ii) पश्चात्कर्म-भिक्षा देने के बाद हाथ आदि धोना। (iii) सस्निग्ध-अल्प जल से युक्त हाथ ।
(iv) उदकाई-जिन से पानी टपकता हो ऐसे हाथ आदि । (स) आम के ताजे कटे हुए टुकड़ों से लिप्त हाथ आदि ।
अग्नि, वायु और त्रसकाय का भिक्षा के साथ संसर्ग होने पर भी उनसे लिप्त होने की सम्भावना ही नहीं है अत: इनसे प्रक्षित नहीं होता।
(ii) अचित्तप्रक्षित-दो प्रकार का है(अ) अचित्त गर्हित - चर्बी आदि घृणित वस्तुओं से लिप्त हाथ आदि (अकल्प्य) ।
प्रक्षित (ब) अचित्त अगर्हित- घी आदि से लिप्त हाथ आदि (कल्प्य)।
प्रक्षित सचित्त म्रक्षित भिक्षा साधु के लिए सर्वथा अकल्प्य है। अचित्त म्रक्षित में घी आदि अगर्हित पदार्थों से म्रक्षित कल्प्य है पर गर्हित पदार्थ चर्बी आदि से प्रक्षित अकल्प्य है। ३. निक्षिप्त
- सचित्त वस्तु पर रखी हुई भिक्षा । (सचित्त-पृथ्वी से लेकर त्रस
तक छ:) सचित्त निक्षिप्त के दो भेद हैं—अनन्तर और परंपर । (i) अनन्तर सचित्त निक्षिप्त : साक्षात् पृथ्वी आदि सचित्त वस्तु पर रखी हुई भिक्षा । (ii) परंपर सचित्त निक्षिप्त : पृथ्वी आदि सचित्त वस्तु पर निहित पात्र में रखी हुई भिक्षा । • पानी में डाला हुआ ठसे घी का पिंड अनन्तर निक्षिप्त। . • जल स्थित नाव आदि में रखे हुए मक्खन, पकवान आदि परंपर निक्षिप्त । • आग पर सेका जाता पापड़ अनन्तर निक्षिप्त। • आग पर रखे हुए पात्र में स्थित पापड़ आदि परंपर निक्षिप्त। • वायु द्वारा उड़ाये गये पापड़, शाली आदि अनन्तर निक्षिप्त । • हवा युक्त थैली, तकिये आदि पर रखे हुए पूए आदि परंपर निक्षिप्त । • सचित्त धान्य आदि पर रखे हुए पूए आदि अनंतर निक्षिप्त । • सचित्त धान्य आदि पर रखे हुए पात्र में पड़ी भिक्षां परंपर निक्षिप्त । • बैल आदि की पीठ पर स्थित भिक्षा अनंतर निक्षिप्त । • बैल आदि की पीठ पर लदी हुई कुप्पी आदि में रखा हुआ घी परंपर निक्षिप्त ।
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