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प्रवचन-सारोद्धार
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और न साथ वाले मुनि को ही कुछ समझ पड़े। जैसे—अमुक काम तुम्हारी इच्छानुसार हो गया है यह लोक-लोकोत्तर प्रच्छन्न है।
दोष—सभी प्रकारों में पाप की प्ररेणा होने से जीव विराधना आदि दोष हैं। ३. निमित्त दोष
- ज्योतिष, भूत-भावी-वर्तमान का शुभाशुभ एवं हस्तरेखा आदि बताकर आहार लेना। जैसे-“कल तुम्हें यह लाभ-हानि हुई थी, भविष्य में तुम्हें राजादि से ऐसा लाभ मिलेगा...आज ऐसा होगा।" इत्यादि बताकर लोगों को आकर्षित करके उनसे अच्छी-अच्छी
भिक्षा ग्रहण करना। दोष
- इस प्रकार से भिक्षा लेना साधु को नहीं कल्पता। इसमें स्व-पर
की हत्या का भय रहता है। ४. जीविका दोष
- अपनी जाति, कुल, गण, कर्म एवं शिल्प का परिचय देकर
आहारादि ग्रहण करना। इन पाँचों का परिचय दो प्रकार से दिया जाता है
(i) सूचना अर्थात् संकेत से, (ii) असूचना अर्थात् स्पष्ट कहकर । (i) सूचना-जैसे कोई मुनि भिक्षा हेतु किसी ब्राह्मण के घर गये। वहाँ ब्राह्मण-पुत्र को यज्ञ करते हुए देखकर उसके पिता को कहे- 'समिधा, मंत्र, आहुति, स्थान, याग, काल एवं घोष की दृष्टि से आपकी यज्ञ क्रिया सही है या गलत है। आपके पुत्र की यज्ञक्रिया सम्यक् होने से लगता है कि आप श्रोत्रिय-पुत्र हैं अथवा वेद-वेदांग के पारंगत किसी अच्छे गुरु से पढ़े हैं।' यह सुनकर ब्राह्मण बोले-'इस प्रकार यज्ञक्रिया के ज्ञाता होने से लगता है आप ब्राह्मण हैं।' किन्तु साधु कुछ न बोले मौन रहे। इससे वह समझ जाये कि ये मुनि ब्राह्मण हैं। यह संकेत द्वारा अपनी जाति बताना है। समिधा. = - पीपल आदि की आर्द्र लकड़ी या खण्ड। मंत्र : ॐकार आदि
वर्ण रचना। आहुति =
- आग में घृत आदि डालना। स्थान =
- उत्कटुकादि आसन । याग : = अश्वमेघादि। काल =
- प्रात:काल आदि। घोष =
- उदात्त-अनुदात्त आदि स्वर ।यज्ञ में समिधा आदि का यथायोग्य
प्रयोग करना सम्यक् क्रिया है। न्यूनाधिक या विपरीत प्रयोग
करना विपरीत क्रिया है। (ii) असूचना कोई पूछे या न पूछे मुनि स्वयं बताये कि वह ब्राह्मण है।
अगर गृहस्थ सरल हो तो जाति प्रेम से साधु के निमित्त आहार बनाकर भिक्षा दे इससे आधाकर्मी दोष । यदि कट्टरवादी हो तो सोचे कि यह धर्मभ्रष्ट, पापात्मा है। इसे घर में भी नहीं घुसने
दोष
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