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________________ प्रवचन - सारोद्धार पूर्वोक्त तीनों आच्छेद्य अकल्प्य हैं। • चोर जिन लोगों से खाद्य सामग्री लूटकर मुनियों को वहोरावें उस समय यदि वे लोक मुनियों को कह दें कि “चोर हमसे लूटकर खाद्य सामग्री आपको दे रहे हैं, इससे हमें बड़ा सन्तोष है ।" तो वे साधु भिक्षा ग्रहण कर ले किन्तु उसका उपयोग न करे। चोरों के जाने के पश्चात् सार्थ को कहे कि “हमने यह सामग्री चोरों के भय से ग्रहण की थी, अब आप अपनी सामग्री पुन: ग्रहण करें।" यदि सार्थ सामग्री ले ले तो दे दे, यदि न ले तो साधु को उसका उपयोग करना कल्पता है । दोष आच्छेद्य ग्रहण करने में, अप्रीति, कलह, आत्मघात, अन्तराय, प्रद्वेष आदि दोषों की सम्भावना है । १५. अनिसृष्ट अनेक स्वामी सम्बन्धी वस्तु सभी स्वामियों की अनुज्ञा के बिना ग्रहण करना। इसके तीन भेद हैं अनेक स्वामी वाली वस्तु । जैसे घाणी का तेल, दुकान में वस्त्र, घर में खाद्य सामग्री, इन पर सभी का स्वामित्व होता है । अगर इन्हें सभी स्वामियों की अनुमति के बिना साधु ग्रहण करे तो साधारण अनिसृष्ट दोष लगता है । चोल्लक = सेठ के द्वारा खेत में काम करने वाले नौकरों को या सेनापति के द्वारा सैनिकों को दिया गया भोजन। यह दो प्रकार का है— (i) छिन्न और (ii) अच्छिन्न अलग-अलग व्यक्तियों को बाँटकर दिया गया भोजनादि 'छिन्न' है । मालिक द्वारा नौकरों को भोजन बाँट देने के पश्चात् उस भोजन में से साधु तभी ले सकते हैं जबकि भोजन से सम्बन्धित मालिकों की अनुमति हो । उनकी अनुमति के बिना वह भोजन दूषित होने से साधु को लेना नहीं कल्पता । सभी नौकरों के हिस्से का एक ही पात्र में रखा हुआ भोजन अच्छिन्न है । उसे सभी की अनुमति हो तो ही साधु ग्रहण कर सकता है अन्यथा नहीं। एक की अनुमति हो और एक की न हो, तो भी वह भोजन लेना साधु को नहीं कल्पता । प्रद्वेष, अन्तराय, परस्पर कलह । हाथी के लिए बनाये हुए भोजन में से हाथी की अनुज्ञा के बिना महावत भिक्षा दे तो भी साधु को लेना नहीं कल्पता । राजहस्ती सम्बन्धी भोजन लेने में राजा की अनुज्ञा भी आवश्यक है अन्यथा (i) साधारण अनिसृष्ट (ii) चोल्लक अनिसृष्ट दोष Jain Education International (i) छिन्न (ii) अच्छिन्न (iii) जडुअनिसृष्ट - २७७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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