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________________ द्वार ६७ २७६ 5:52000000000000004:221101 0 - 06- -- सार दोष अशनादि लाकर साधु को भिक्षा देना। इसमें चढ़ना और उतरना दोनों क्रियाएँ होने से यह उभयमालापहृत है। (iv) तिर्यग्मालापहत - जाड़ी और मोटी दीवार में रहे हुए ऊंडे और गहरे गोखलों में हाथ डालकर दृश्य या अदृश्य वस्तु निकालकर भिक्षा देना। – खाट, पाट आदि पर चढ़कर छीके से वस्तु उतारते समय, खाट, पाट आदि खिसकने से गृहस्थ नीचे गिरे, जिससे हाथ, पाँव आदि में चोट लगे, कीड़ी आदि त्रस जीवों की तथा पथ्वी आदि के जीवों की विराधना हो । गिरने वाले के मर्मस्थान में लगे तो मृत्यु की सम्भावना रहती है। इससे धर्म की निंदा होती है, साधु का उपहास होता है कि “ये कैसे मूर्ख साधु हैं जो देने वाले का हिताहित भी नहीं सोचते” या “इनको आहार देने वाले की मृत्यु हो गई अत: ये अशुभ हैं।" प्रश्न—माला शब्द सामान्यतया ऊपरवर्ती भाग का ही बोधक है। यहाँ निम्न भाग के लिए भी माला शब्द का प्रयोग कैसे किया? उत्तर—लोकरूढ़ि से ऊपरवर्ती भाग का वाचक 'माला' शब्द का यहाँ उपयोग नहीं है पर आगमप्रसिद्ध 'माला' शब्द ही यहाँ ग्रहण किया गया है। आगम में भूमि-गृहादि के लिए भी 'माला' शब्द का प्रयोग हुआ है। • सीढ़ी आदि से चढ़कर लाई गई भिक्षा लेना साधु को कल्पती है। देने वाला सीढ़ी आदि चढ़कर ऊपर जाये तब उसके पीछे एषणाशुद्धि के लिये साधु को भी जाना चाहिये। . • अपवाद की स्थिति में भूमिगृह से लाई गई भिक्षा भी साधु को लेना कल्पता है। १४. आच्छेहा - पुत्र, नौकर आदि की इच्छा न होते हुए भी उनसे खाद्य पदार्थ लेकर साधु को वहोराना। यह तीन प्रकार का है - (i) स्वामीविषयक, (ii) प्रभुविषयक, (ii) स्तेनविषयक। (i) स्वामीविषयक – गाँव के मुखिया द्वारा गौचरी आदि के लिये जाते हुए साधु को देखकर सरलता से या हठात् अपने कुटुम्बीजनों से खाद्य पदार्थ लेकर साधु को भिक्षा देना। (ii) प्रभुविषयक -- घर वालों की इच्छा न होते हुए भी घर के मालिक के द्वारा उनके हिस्से का खाद्य पदार्थ साधु को वहोरा देना। (iii) स्तेनविषयक - साधुओं के प्रति श्रद्धालु चोर द्वारा, साधुओं को गौचरी हेतु घूमते हुए देखकर, सार्थ आदि को लूटकर लाई हुई भिक्षा मुनियों को देना। (अपने लिये लूटे, कभी साधु के निमित्त भी लूटकर भिक्षा देना) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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