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प्रवचन-सारोद्धार
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उपहास
- मिटटी का शोधन करते समय बिच्छू आदि के डंक देने की
सम्भावना होने से लोगों में उपहास । कितने प्रभावशाली हैं ये मुनिलोग कि जिन्हें दान देने वाले दाता को बिच्छू के डंक का
फल मिला। पाप-प्रवृत्ति
- साधु के निमित्त खोली गई मटकी में से ग्राहक को घी आदि
बेचने से पाप-प्रवृत्ति। जीव-हिंसा
- मटकी आदि का मुँह पुन: बन्द करना भूल जाये तो मूषक आदि
अन्दर पड़ने से हिंसा। • कपाटोद्भिन्न में भी प्राय: ये ही दोष लगते हैं, जैसे—किवाड़ के पास पृथ्वीकाय-मिट्टी आदि
पड़ी हो, कदाचित् पानी से भरा लोटा आदि या बीजोरा आदि रखा हो तो किवाड़ खोलने से पृथ्वी आदि के जीवों की विराधना होगी। यदि जल फैलता-फैलता समीपवर्ती चूल्हे में चला जाये तो अग्निकाय के जीवों की विराधना होगी और जहाँ आग होती है वहाँ वायु अवश्य होता है अत: वायकाय की भी विराधना होगी। यदि जल चहे आदि के बिल में चला जाये तो कीड़ी, छिपकली आदि त्रसकाय जीवों की विराधना की भी सम्भावना है तथा बालक आदि को देने से, क्रय-विक्रय आदि करने से प्राप-प्रवृत्ति होगी। अत: दोनों प्रकार
का उद्भिन्न साधु के लिये अग्राह्य है। • यदि मटका आदि का मुँह प्रतिदिन खोला जाता हो या केवल कपड़े से ही मुँह बाँधा जाता
हो तो उसे खोलकर गुड़, शक्कर आदि साधु को दिया जा सकता है। • जो दरवाजा प्रतिदिन खोला जाता हो, खोलते समय दरवाजा या सांकल धरती के साथ
घिसती न हो तो ऐसा दरवाजा या सांकल खोलकर साधु को भिक्षा दी जा सकती है। १३. मालापहृत
- साधु के निमित्त छींके आदि से उतारकर भिक्षा देना नहीं कल्पता ।
यह चार प्रकार का है-(i) ऊर्ध्वमालापहृत, (ii) अधोमालापहत,
(iii) उभयमालापहत तथा (iv) तिर्यग्मालापहृत । (i) ऊर्ध्वमालापहत - जघन्य, माध्यम और उत्कृष्ट तीन प्रकार का है। .
जघन्य-पाँव के पंजे पर खड़े रहकर आँखों से दिखाई न देने वाली छीके पर या या ताक पर रखी हुई वस्तु उतारना ऊर्ध्वमालापहत है। मध्यम-मध्यम ऊँचाई से वस्तु लाकर साधु को भिक्षा देना। उत्कृष्ट—निसरणी आदि से चढ़कर ऊपर की मंजिल से लाई
गई वस्तु। (ii) अधोमालापहत - भूमि घर' से अशनादि लाकर भिक्षा देना। (iii) उभयमालापहत - ऊपर चढ़कर पुन: कोठी, मंजूषा आदि में उतर कर बड़े कष्टपूर्वक
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