SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० Jain Education International द्वार ६७ की अनुपस्थिति से शादी में आहार आदि का लाभ नहीं मिलेगा । अतः जब गुरु महाराज पधारेंगे, तभी शादी-विवाह करूँगा । वही आहारादि पवित्र है, जो सत्पात्र में दिये जाते हैं । तदेवाशनादिकं सफलं यो सुपात्रेषु विनियोगं याति । इस प्रकार गुरु के आने के बाद लग्न करना । यह बादर उत्ष्वष्कण प्राभृतिका है । साधु का आगमन हो जाने पर, निश्चित तिथि से पूर्व या पश्चात् विवाह आदि करना बादर अवष्वष्कण प्राभृतिका है । सूक्ष्म उत्ष्वष्कण-अवष्वष्कण प्राभृतिका सूत कात रही अपनी माँ से बच्चा खाना माँग रहा है, किन्तु माँ पड़ोस में भिक्षा के लिये आये हुए मुनि को देखकर बच्चे को कहती है कि “थोड़ी देर शान्ति रख। मुनि गोचरी के लिये अपने घर आयेंगे, तब उन्हें भिक्षा देने के लिए उठना पड़ेगा उस समय तुझे भी खाना दूँगी।" इस प्रकार साधु को भिक्षा देने के बाद, बच्चे को खाना देना, सूक्ष्म उत्ष्वष्कण । बच्चे को कहा कि खाना बाद में देंगे, किन्तु साधु के जल्दी आ जाने से उन्हें भिक्षा देकर साथ ही बच्चे को भी खाना देना, यह सूक्ष्म अवष्वष्कण है I नोट- यहाँ मुख्य रूप से गृहस्थ का उठना, साधु को भिक्षा देने के लिये है । बच्चे को भोजन देना आनुषांगिक है । बच्चे को भोजन देकर गृहस्थ हाथ आदि धोता है। इससे अष्काय जीवों की विराधना होती है। इसमें साधु निमित्त बनने से दोष लगता है । ७. प्रादुष्करण इसके दो अर्थ हैं- १. प्रकट करना, २ . प्रकाश करना। अन्धेरे में रखा हुआ आहार- पानी साधु नहीं लेंगे, ऐसा सोचकर मणि, अग्नि, दीपक आदि का प्रकाश करना। खिड़की निकालना । छोटे द्वार को बड़ा करवाना। भींत आदि में छिद्र रखना । इस प्रकार साधु को देने योग्य वस्तु को प्रकाशित करना प्रादुष्करण 1 अन्धेरे में रखी हुई भिक्षा साधु नहीं लेंगे, इस भय से चूल्हा आदि प्रकाश वाले स्थान में बनाना अथवा वस्तु को अन्धेरे से प्रकाश में लाकर रखना । इस प्रकार वस्तु को प्रकट करना भी प्रादुष्करण है I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy