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________________ प्रवचन-सारोद्धार २६९ ४. मिश्र-जात ५. स्थापना ६.प्राभृत से दूषित आहार के अवयवों से युक्त थाली, कटोरी, चम्मच आदि में आहार लेना भी मनि को नहीं कल्पता। परिवार और साधु दोनों का संकल्प करके बनाया हुआ भोजनादि । यह तीन प्रकार का है-(i) यावदर्थिक मिश्र (ii) पाखंडी मिश्र (iii) साधु-मिश्र। (i) यावदर्थिक मिश्र-परिवार के लिये तथा गृहस्थ, पाखंडी, भिखारी आदि को देने के लिये एक साथ बनाया हुआ भोजन । (ii) पाखंडी मिश्र-परिवार और पाखंडी के लिये एक साथ बनाया हुआ भोजन। (iii) साधु-मिश्र-केवल परिवार और मुनि के लिये एक साथ बनाया हुआ भोजन । - 'यह मुनियों को देना है' ऐसा सोचकर आहारादि कुछ समय तक अलग निकालकर रखना। (i) चूल्हे पर रखना, स्वस्थान स्थापना, (ii) छींका, टोकरी आदि में रखना परस्थान स्थापना। काल से अल्प-समय तक या अधिक समय तक रखना। किसी इष्ट या पूज्य के लिये बहुमानपूर्वक दी जाने वाली इच्छित वस्तु प्राभृत/ भेंट कहलाती है। साधु पूज्य हैं, अत: उन्हें दी जाने वाली भिक्षा भी उपचार से प्राभृत कहलाती है अथवा साधु को देने की भावना से बनाई गई भिक्षा प्राभृतिका कहलाती है। वह दो प्रकार की है(i) बादर और (ii) सूक्ष्म । (i) बादर-अधिक आरम्भ-युक्त भिक्षा बादर प्राभृतिका। (ii) सूक्ष्म-अल्प आरम्भ-युक्त भिक्षा सूक्ष्म-प्राभृतिका। ये दोनों दो प्रकार के हैं—१. उत्वष्कण, २. अवष्वष्कण । १. निर्धारित समय के बाद आरम्भ करके बनाई गई भिक्षा उत्वष्कण प्राभृतिका है। २. निर्धारित समय से पूर्व आरम्भ करके बनाई गई भिक्षा अवष्वष्कण प्राभृतिका है। .. बादर उत्ष्वष्कण-अवष्वष्कण प्राभृतिकाश्रावक ने अपने पुत्रादि की शादी की तिथि निश्चित कर दी, किन्तु गाँव में साधु महाराज नहीं होने से सोचे कि “साधु महाराज For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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