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प्रवचन-सारोद्धार
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तच्चावि एरिसच्चिय नवरं ठाणं तु तस्स गोदोही। वीरासणमहवावि चिट्ठिज्जा अंबुखुज्जो वा ॥५८५ ॥ एमेव अहोराइ छटुं भत्तं अपाणगं नवरं । गामनगराण बहिया वग्घारियपाणिए ठाणं ॥५८६ ॥ एमेव एगराई अट्ठमभत्तेण ठाण बाहिरओ। ईसीपब्भारगए अणिमिसनयणेगदिट्ठीए ॥५८७ ॥ साहट्ट दोवि पाए वग्घारियपाणि ठायए ठाणं । वाघारियलंबियभुओ अंते य इमीइ लद्धित्ति ॥५८८ ॥ फासण रसणं घाणं चक्खू सोयंति इंदियाणेसिं। फास रस गंध वण्णा सद्दा विसया विणिद्दिट्ठा ॥५८९ ॥ पडिलेहणाण गोसावराण्हउग्घाडपोरिसीसु तिगं। तत्थ पढमा अणुग्गय सूरे पडिक्कमणकरणाओ ॥५९० ॥ मुहपोत्ति चोलपट्टो कप्पतिगं दो निसिज्ज रयहरणं । संथारुत्तरपट्टो दस पेहाऽणुग्गए सूरे ॥५९१ ॥ उवगरणचउद्दसगं पडिलेहिज्जइ दिणस्स पहरतिगे। उग्घाडपोरिसीए उ पत्तनिज्जोगपडिलेहा ॥५९२ ॥ पडिलेहिऊण उवहिं गोसंमि पमज्जणा उ वसहीए। अवरण्हे पुण पढमं पमज्जणा तयणु पडिलेहा ॥५९३ ॥ दोन्नि य पमज्जणाओ उउंमि वासासु तइय मज्झण्हे । वसहिं बहुसो पमज्जण अइसंघट्टऽन्नहिं गच्छे ॥५९४ ॥ मणगुत्तिमाइयाओ गुत्तीओ तिन्नि हुंति नायव्वा।। अकुसलनिवित्तिरूवा कुसलपवित्तिस्सरूवा य ॥५९५ ॥ दव्वे खित्ते काले भावे य अभिग्गहा विणिद्दिट्ठा । ते पण अणेगभेया करणस्स इमं सरूवं तु ॥५९६ ॥
-गाथार्थकरण के ७० भेद-पिंडविशुद्धि, समिति, भावना, प्रतिमा, इन्द्रियनिरोध, प्रतिलेखन, गुप्ति और अभिग्रह-ये करण के ७० भेद हैं ।।५६२ ।।
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