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द्वार ६७
पढममणिच्च-मसरणं संसारो एगया य अन्नत्तं । असुइत्तं आसव संवरो य तह निज्जरा नवमी ॥५७२ ॥ लोगसहावो बोहि य दुलहा धम्मस्स साहओ अरहा। एयाउ हुंति बारस जहक्कम भावणीयाओ ॥५७३ ॥ मासाई सत्तंता पढमा बिइ तइय सत्तराइदिणा । अहमइ एगराई भिक्खुपडिमाण बारसगं ॥५७४ ॥ पडिवज्जइ एयाओ संघयणधिइजुओ महासत्तो। पडिमाओ भावियप्पा सम्मं गुरुणा अणुन्नाओ ॥५७५ ॥ गच्छेच्चिय निम्माओ जा पुव्वा दस भवे असंपुण्णा। नवमस्स तइय वत्थु होइ जहण्णो सुआभिगमो ॥५७६ ॥ वोसठ्ठचत्तदेहो उवसग्गसहो जहेव जिणकप्पी। एसणअभिग्गहीया भत्तं च अलेवडं तस्स ॥५७७ ॥ गच्छा विणिक्खमित्ता पडिवज्जइ मासियं महापडिमं । दत्तेगा भोयणस्सा पाणस्सवि तत्थ एग भवे ॥५७८ ॥ जत्थऽत्थमेइ सूरो न तओ ठाणा पयंपि संचलइ । नाएगराइवासी एगं च दुगं च अण्णाए ॥५७९ ॥ दुट्ठाण हत्थिमाईण नो भएणं पयंपि ओसरइ। एमाइनियमसेवी विहरइ जाऽखण्डिओ मासो ॥५८० ॥ पच्छा गच्छमुवेई एव दुमासी तिमासि जा सत्त । नवरं दत्ती वड्डइ जा सत्त उ सत्तमासीए ॥५८१ ॥ तत्तो य अट्ठमीया भवई इह पढमं सत्तराइंदी। तीइ चउत्थचउत्थेणऽपाणएणं अह विसेसो ॥५८२ ॥ उत्ताणगणपासल्ली नेसज्जी वारि ठाण ठाइत्ता। सहउस्सग्गे घोरे दिव्वाई तत्थ अविकंपो ॥५८३ ॥. दोच्चावि एरिसच्चिय बहिया गामाइयाण नवरं तु । उक्कुडलगंडसाई दण्डाययउव्व ठाइत्ता ॥५८४॥
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