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प्रवचन-सारोद्धार
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१२ तप
- अनशनादि ६ बाह्यतप + प्रायश्चित्त आदि, ६ आभ्यन्तर तप
(अतिचार के वर्णन में विस्तार से बताया है) ॥ ५५९-५६० ॥ - संसार भ्रमण के कारणभूत क्रोधादि चार कषायों का
निग्रह ।।५६१॥
४. क्रोधादि
६७ द्वार:
करण-भेद
पिंडविसोही समिई भावण पडिमा य इंदियनिरोहो। पडिलेहण गुत्तीओ अभिग्गहा चेव करणं तु ॥५६२ ॥ सोलस उग्गमदोसा सोलस उपायणाय दोसत्ति । दस एसणाय दोसा बायालीसं इह हवन्ति ॥५६३ ॥ आहाकम्मुद्देसिय पूईकम्मे य मीसजाए य। ठवणा पाहुडियाए पाओयर कीय पामिच्चे ॥५६४ ॥ .. परियट्टिए अभिहडुब्भिन्ने मालोहडे य अच्छिज्जे ।
अणिसिद्धेऽज्झोयरए सोलस पिण्डुग्गमे दोसा ॥५६५ ॥ धाई दूई निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य। कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए ॥५६६ ॥ पुव्वि पच्छा संथव विज्जा मंते य चुण्ण जोगे य । उप्पायणाय दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥५६७ ॥ संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहिय साहरिय दायगु मिस्से । अपरिणय लित्त छड्डिय एसणदोसा दस हवंति ॥५६८ ॥ पिंडेसणा य सव्वा संखित्तोयरइ नवसु कोडीसु । न हणइ न किणइ न पयइ कारावणअणुमईहि नव ॥५६९ ॥ कम्मुद्देसियचरिमे तिय पूइयमीसचरिमपाहुडिया। अज्झोयर अविसोही विसोहिकोडी भवे सेसा ॥५७० ॥ इरिया भासा एसण आयाणाईसु तह परिट्ठवणा। सम्मं जा उ पवित्ती सा समिई पंचहा एवं ॥ ५७१ ॥
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