SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार २४७ : 50: अन्यत्र - २. संसक्तसंपत्-श्रोता की योग्यता देखकर उपदेश देने वाले । - पीठफलक-संग्रह-संपत्– संथारा आदि मलिन न हो, इस हेतु __पाट आदि का संपादन करने में कुशल । -- ३. स्वाध्यायसंपत्-यथासमय स्वाध्याय, पडिलेहण, गौचरी, उपधि ग्रहण करने-कराने वाले। - ४. शिक्षोपसंग्रहसंपत्-गुरु, दीक्षादाता, रत्नाधिक आदि की उपधि लेना, वैयावच्च करना, बाहर से आवे तो सामने लेने जाना, दंडा लेना इत्यादि विनय की शिक्षा करने वाले ।। ५४५ ।। विनय के चार प्रकार१. आचार विनय (i) संयम-समाचारी - जिस आचार के द्वारा कर्म-मल दूर होता है, वह आचार-विनय । इसके चार भेद हैं- स्वयं संयम का पालन करना, दूसरों से करवाना। संयम में शिथिल बने हुए आत्मा को पुन: स्थिर करना। संयम में प्रयत्नशील को प्रोत्साहित करना। - पक्खी आदि पर्व दिनों में स्वयं तप करना, दूसरों से करवाना। स्वयं गौचरी जाना, दूसरों को गौचरी भेजना। - ग्लान, वृद्ध बालादि की वैयावृत्य स्वयं करना तथा दूसरों को करने की प्रेरणा देना। - एकाकी विहार प्रतिमा स्वयं ग्रहण करे, दूसरों से ग्रहण करावे । (ii) तप समाचारी (iii) गण समाचारी (iv) एकाकी विहार प्रतिमा २. श्रुत विनय - जिस श्रुत के द्वारा कर्म-मल दूर होता है। वह श्रुत-विनय चार __ प्रकार का है- (i) सूत्र की वाचना देने वाले। - (ii) अर्थ की वाचना देने वाले। - (iii) योग्य शिष्यों को उनके योग्य सूत्र, अर्थ व सूत्रार्थ का ज्ञान देने वाले। - (iv) सूत्रार्थ की समाप्ति पर्यन्त वाचना देने वाले। विक्षेपण = हटाना। यह भी चार प्रकार का है(i) मिथ्यादृष्टि को मिथ्यामार्ग से हटाकर सुमार्ग में स्थिर करना। (ii) सम्यक्दृष्टि गृहस्थ को गृहस्थावास छुड़वाकर दीक्षित करना। ३. विक्षेपण विनय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy