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________________ प्रवचन - सारोद्धार अन्यम ३. शरीरसम्पत् अन्यत्र ४. वचन सम्पत् ५. वाचना सम्पत् Jain Education International १. बहुश्रुतता, २. परिचितसूत्रता, ३. विचित्रसूत्रता, ४. घोषविशुद्धि करणता । चारों के अर्थ क्रमशः पूर्ववत् समझना ॥ ५४२ ।। सुन्दरशरीरी। इसके चार भेद हैं (१) चतुरस्र = लक्षण प्रमाण युक्त शरीर वाले । (२) अकुंट = परिपूर्ण अंगोपांग वाले । (३) बधिरत्वादिवर्जित अविकल इंद्रिय वाले (४) दृढ़ संहननी = बाह्य और आभ्यन्तर तप करने में समर्थ । १. आरोहपरिणाहयुक्त = लक्षण-प्रमाणयुक्त लंबाई-चौड़ाई वाले । २४५ = २. अनवत्राप्य = पाँचों इन्द्रिय परिपूर्ण होने से अलज्जाकर । ३. परिपूर्णेन्द्रिय = पाँचों इन्द्रिय से परिपूर्ण । ४. स्थिरसंहनन = दृढ़ संहनन वाले | वचनातिशय युक्त | इसके चार भेद हैं १. वादीप्रशस्त व अतिशय युक्त वचन वाले वादी अर्थात् सभी के द्वारा मान्य वचन वाले, आदेयवचनी । २. मधुरवचन = जिनका वचन अर्थयुक्त, मधुर, सुस्वरवाला, गांभीर्यादि गुण से युक्त होने से श्रोता के मन को आनन्दि करने वाला हो । ३. अनिश्रितवचन = राग-द्वेष से रहित अकलुषित वचन वाले । ४. स्फुटवचन = सरलता से समझा जा सके ऐसे वचन वाले ॥५४३ ॥ * वाचना के अतिशय से युक्त। इसके चार प्रकार हैं१. योग्य वाचना = परिणामी आदि बुद्धि युक्त शिष्यों को उनकी योग्यता के अनुसार सूत्रों के उद्देश, समुद्देश करने वाले । अपरिणत बुद्धि वाले आत्मा को वाचना देने में दोषों की संभावना है, जैसे कच्चे-घड़े में पानी डालने से घड़ा ही फूट जाता है और पानी भी नष्ट हो जाता है, वैसे ही अयोग्य शिष्य को ज्ञान देने से गुरु-शिष्य दोनों का अहित होता है । २. परिणतवाचना पहले दी गई वाचना की अच्छी तरह से परिणति कराने के बाद ही आगे वाचना देने वाले । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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