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________________ २३८ प्रयोजन १२. स्कंधकरणी प्रयोजन ६३ द्वार : - Jain Education International दो हाथ की उपाश्रय में ओढ़ने के लिये, क्योंकि साध्वी कभी खुले बदन नहीं रह सकती । तीन हाथ की दो हैं, उनमें से एक गोचरी के लिये, दूसरी स्थण्डिल के लिये । प्रवचन, स्नात्र आदि में जाते समय चार हाथ की चादर चाहिये । साध्वी को प्रवचन खड़े-खड़े श्रवण करने का विधान है, अत: उस समय चार हाथ की चादर ओढ़ना ही उचित है ताकि शरीर पूर्ण रूप से ढका हुआ रहे। चादर, स्निग्ध, कोमल वस्त्र की होनी चाहिये । यह कंचुक आदि को आच्छादित करने हेतु, श्लाघा व दीप्ति के लिये अच्छी ही बनानी चाहिये । यद्यपि प्रमाण भेद से चद्दर चार हैं, तथापि एक साथ एक का ही उपयोग होने से, एक का ही गिनी जाती है ।। ५३५-५३७ ।। चार हाथ लंबी और चार हाथ चौड़ी तह करके जो खंभे पर रखी जाती है जिसे वर्तमान में 'कंबली' कहते हैं । वायु आदि से रक्षा करने के लिये । भय के समय रूपवती साध्वी की पीठ पर बाँधकर उसे कूबड़ी की तरह विरूप बनाया जा सकता है । इस कारण 'स्कंधकरणी' को 'कुब्जकरणी' भी कहा जाता है ॥ ५३८ ॥ जिनकल्पी संख्या जिणकप्पिया य साहू उक्कोसेणं तु एगवसहीए । सत्त य हवंति कहमवि अहिया कइयावि नो हुंति ॥५३९ ॥ द्वार ६२-६३ -गाथार्थ एकवसति में जिनकल्पियों की उत्कृष्ट संख्या - एकवसति में उत्कृष्टतः सात जिनकल्पी रहते हैं । इससे अधिक कभी भी नहीं रहते ।। ५३९ ।। -विवेचन जिनकल्पिक स्वरूप – जिनकल्प स्वीकार करने से पहले आचार्य आदि रात्रि के पूर्व या अन्तिम भाग में चिंतन करे कि विशुद्ध चारित्र का पालन करके मैंने स्वयं का आत्महित किया तथा शिष्यों का निष्पादन करके परहित भी साधा है । गच्छ का भार वहन कर सके ऐसे शिष्य तैयार हो चुके हैं अतः उनके कंधों पर गच्छ का संपूर्ण भार डालकर मुझे विशेष आत्म-साधन में संलग्न हो जाना चाहिये । ऐसा चिन्तन करने के पश्चात् वे ज्ञान-बल से अपनी आयु का प्रमाण ज्ञात करे, स्वयं का इतना ज्ञान For Private & Personal Use Only 4 www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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