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________________ प्रवचन-सारोद्धार २३७ प्रयोजन ५. चलनिक ६. अन्तर्निर्वसनी ७. बहिर्निर्वसनी ८. कंचुक प्रयोजन उपर से कमर प्रमाण होता है तथा दोनों जंघाओं पर कसों द्वारों बाँधकर फिट किया जाता है। प्राय: जांघिये की तरह होता है। - ब्रह्मचर्य की रक्षा। - कटिप्रमाण, नीचे घुटनों तक लंबा डोरे से बँधा हुआ बिना सिला वस्त्र विशेष । जो पूर्वोक्त तीनों के ऊपर पहिना जाता है तथा नर्तकी के परिधान वस्त्र के समान लगता है ।। ५३३॥ - कमर से लेकर पिण्डलियों तक लंबा वस्त्र विशेष । जो पहिनते समय फिट रखा जाता है ताकि आकुलता की स्थिति में उपहास न हो। - यह कमर से नीचे टखनों तक लंबा होता है। कमर पर डोरे से बँधा हुआ होता है। वर्तमान में इसे साड़ा कहा जाता है। ५३४ ॥ - ढाई हाथ लम्बा और एक हाथ चौड़ा अथवा शरीर प्रमाण, बिना सिला वस्त्र। इसे दोनों तरफ कसों से बाँधकर शरीर पर पहिना जाता है। कापालिक के कंचक की तरह होता है।। - हृदयभाग को ढंकने के लिये उपयोगी होता है। यह अत्यन्त गाढ़े कपड़े का और कसकर बंधा हुआ नहीं होना चाहिये। कसकर बँधे हुए स्तनों को देखकर किसी को मोह पैदा हो सकता है। काँख के समीप का भाग उप-कक्ष कहलाता है। उसे ढंकने वाला वस्त्र उपकक्षिका है। यह डेढ़ हाथ लंबी-चौड़ी कंचुक की तरह ही होती है। इसका एक हिस्सा पेट और छाती को ढंकता है तथा दूसरे हिस्से को दाहिने कंधे के नीचे से निकाल कर पीठ को ढंकते हुए बायें कंधे पर लाकर पहिले हिस्से के सिरे के साथ गाँठ देकर जोड़ दिया जाता है। - डेढ़ हाथ लंबी-चौड़ी। इसे बांई ओर से दांई ओर लेकर दांए कंधे पर गाँठ दी जाती है।। - पूर्वोक्त दोनों का प्रयोजन संयमरक्षा है । वर्तमान में इसे 'चादर' कहते हैं। यह चार तरह की होती है पहली दो हाथ चौड़ी, दूसरी-तीसरी तीन हाथ चौड़ी और चौथी चार हाथ चौड़ी होती है। लंबाई में चारों ही साढ़े तीन हाथ की होती है। ९. उपकक्षिका १०. वैकक्षिका प्रयोजन ११. संघाटी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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