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द्वार ६२
आदि में जाते समय ओढ़ी जाती है, क्योंकि समवसरण में साध्वियों को बैठने का नहीं होता। चद्दर कोमल वस्त्र की बनी हुई होनी चाहिये ।।५३६-४३७ ।।
___ स्कंधकरणी चार हाथ विस्तृत होती है। यह वायुजन्य पीड़ा से रक्षा करने में उपयोगी है। अथवा रूपवती साध्वी की शीलरक्षा के लिये उसे कुब्जा दिखाने में भी यह उपयोगी है अत: इसे खुब्जकरणी भी कहते हैं ।।५३८॥)
-विवेचनसाध्वी के पच्चीस उपकरण हैं, उनमें चोलपट्ट रहित पूर्वक्ति तेरह तथा निम्न बारह उपकरण मिलाने पर = पच्चीस उपकरण होते हैं।
- तुम्बड़े का लेप किया हुआ पात्र । इसका आकार कांसी की
तासली की तरह होता है । इसका परिमाण, एक साध्वी की क्षुधा निवृत्त हो जाये इतना भाजन समा सके उतना होता है। यह प्रत्येक साध्वी के अलग-अलग होता है, जिसमें वे गौचरी करती
प्रयोजन
२. अवग्रहानन्तक
प्रयोजन
साध्वियों की मंडली में गौचरी पात्र में नहीं दी जाती । जातिगत स्वभाव के कारण कलह आदि की संभावना रहती है। अत: साध्वियाँ अपने-अपने कमढ़क (वर्तमान में जिसे पत्री कहते है)
अलग-अलग ही रखती हैं और उसमें गौचरी करती हैं ।। ५२८ ॥ - अवग्रह = योनि, अनन्तक = नाव के आकार का बीच में
चौड़ा और दोनों सिरों से संकड़ा वस्त्र । ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए योनि भाग में धारण किये जाने वाला वस्त्र। ऋतुधर्म एवं ब्रह्मचर्य की रक्षा की दृष्टि से अवग्रहानन्तक उपयोगी है। यह स्निग्ध एवं गाढ़े वस्त्र का बना होना चाहिये। योनि के साथ कोमल वस्त्र का स्पर्श होने पर मन में किसी प्रकार का विकार पैदा नहीं होता क्योंकि सजातीय स्पर्श इतना असरकारक नहीं होता। यह देहप्रमाण बनाना चाहिये। यह संख्या में १
होता है ॥ ५३१॥ - कमर प्रमाण लंबा व चार अंगुल चौड़ा वस्त्र पट्टक है। यह
कमरपट्ट के समान होता है। --- अवग्रहानन्तक के दोनों सिरों को टिकाने के लिए कमरपट्ट की
तरह कमर में बाँधा जाता है । अवग्रहानन्तक के ऊपर कमरपट्ट
बाँधने पर पहलवान के कच्छे सा आकार बनता है ।। ५३२ ॥ - पूर्वोक्त दोनों को ढंकने वाला अर्धजानुप्रमाण वस्त्र विशेष । जो
३. पट्टक
प्रयोजन
४. अोरुक्
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