SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार २३५ 0303:3300146 छाएइ अणुक्कुइए उरोरुहे कंचुओ असिव्वियओ। एमेव य ओकच्छिय सा नवरं दाहिणे पासे ॥५३५ ॥ वेगच्छिया उ पट्टो कंचुगमुक्कच्छिगं च छायंतो। संघाडीओ चउरो तत्थ दुहत्था उवसयंमि ॥५३६ ॥ दोन्नि तिहत्थायामा भिक्खट्ठा एग एगमुच्चारे। ओसरणे चउहत्थाऽनिसण्णपच्छायणा मसिणा ॥५३७॥ खंधगरणी उ चउहत्थवित्थडा वायविहुयरक्खट्ठा। खुज्जकरणी उ कीरइ रूववईणं कुडहहेऊ ॥५३८ ॥ -गाथार्थ। साध्वियों के उपकरण-चोलपट्टे रहित और कमढ़क (तुंबा) सहित पूर्वोक्त चौदह उपकरण साध्वियों के भी होते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी उपकरण साध्वियों के होते हैं ।।५२८ ।। साध्वियों के अन्य उपकरण-१. अवग्रहानन्तक, २. पट्टक, ३. अोरुक, ४. चलनिका, ५. अभ्यंतरनिर्वसनी, ६. बहिर्निर्वसनी, ७. कंचुक, ८. उपकक्षिका, ९. वैकक्षिका, १०. संघाटी एवं ११. स्कंधकरणी-इस प्रकार कुल मिलाकर साध्वियों के २५ उपकरण हैं ।।५२८-५३० ।।। गुप्तांग की रक्षा हेतु नौका के आकारवाला, शरीर परिमाण वस्त्र अवग्रहानन्तक कहलाता है। इसका वस्त्र मोटा व कोमल होना चाहिये ॥५३१ ।। चार अंगुल चौड़ा, कमर परिमाण वस्त्र पट्टक है। अवग्रहानन्तक के दोनों छोरों को ढंकने के लिये यह आवश्यक है। अवग्रहानन्तक एवं कमरपट्ट बाँधने के पश्चात् मल्ल के कच्छे की तरह दिखाई देते हैं।॥५३२।। ___अवग्रहानन्तक एवं कमरपट्ट सहित कटिभाग को ढंकनेवाला जंघा तक लंबा वस्त्र अोरुक है। ऐसा ही बिना सिला हुआ घुटनों तक का वस्त्र चलनिका कहलाता है। यह वस्त्र नर्तकी के लंहगे जैसा होता है ।।५३३ ।। ___ कमर से लेकर पग की पिंडी तक लंबा व नीचे से कसा हुआ वस्त्र अन्तर्निर्वसनी है। ऐसे ही वस्त्र पर टखनों तक लंबा एवं नीचे से खुला और कटिभाग में डोरे से बँधा हुआ, बहिर्निर्वसनी है॥५३४॥ बिना सिला हुआ, शिथिल तथा स्तनों को ढंकने वाला वस्त्र कंचुक है। इसी तरह दाहिनी . ओर पहना जाने वाला वस्त्र उपकक्षिका है ।।५३५ ॥ पट्ट, कंचुक एवं उपकक्षिका को ढंकने वाला वस्त्र वैकक्षिका है। संघाटिका (चद्दर) के चार भेद हैं। उपाश्रय में ओढ़ने की एक हाथ की एक चद्दर, तीन हाथ की दो चद्दर होती हैं जो गौचरी जाते समय तथा स्थंडिलभूमि जाते समय ओढ़ी जाती है। चौथी ४ हाथ की चद्दर जो समवसरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy