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प्रवचन-सारोद्धार
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चारित्र उपलब्ध होते हैं। महाविदेह क्षेत्र में भी पूर्वोक्त तीन चारित्र ही होते हैं । इन क्षेत्रों में छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धि चारित्र का कदाचित् अभाव होता है।
७७वें और ७८वें द्वार में यह बताया गया है कि दस स्थितिकल्पों में मध्यवर्ती-बावीस तीर्थंकरों के समय में चार स्थित, छ: वैकल्पिक कल्प होते हैं जबकि प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के समय में दस ही स्थित कल्प होते हैं।
७९३ द्वार में निम्न पाँच प्रकार के चैत्यों का उल्लेख हुआ है—(१) भक्ति चैत्य, (२) मंगल चैत्य, (३) निश्राकृत चैत्य, (४) अनिश्राकृत चैत्य और (५) शाश्वत चैत्य।
८०वें द्वार में निम्न पाँच प्रकार की पुस्तकों का उल्लेख हुआ है—(१) गण्डिका, (२) कच्छपी, (३) मुष्टि, (४) संपुष्ट फलक, और (५) छेदपाटी। इसी क्रम में ८१वें द्वार में पाँच प्रकार के दण्डों का, ८२वें द्वार में पाँच प्रकार के तृणों का, ८३वे द्वार में पाँच प्रकार के चमड़े का और ८४वें द्वार में पाँच प्रकार के वस्त्रों का विवेचन किया गया है।
८५वे द्वार में पाँच प्रकार के अवग्रहों (ठहरने के स्थानों) का और ८६वें द्वार में बावीस परिषहों का विवेचन किया गया है।
८७वे द्वार में सात प्रकार की मण्डलियों का उल्लेख है। ८८वे द्वार में जम्बूस्वामी के समय में जिन दस बातों का विच्छेद हुआ, उनका उल्लेख है।
८९वें द्वार में क्षपकश्रेणी का और ९०वें द्वार में उपशमश्रेणी का विवेचन है।
९१वें द्वार में स्थण्डिल भूमि (मल-मूत्र विसर्जन करने का स्थान) कैसी होनी चाहिए—इसका विवेचन उपलब्ध होता है।
__ ९२वें द्वार में चौदह पूर्वो और उनके विषय तथा पदों की संख्या आदि का निर्देश किया गया
९३वे द्वार में निर्ग्रन्थों के पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक—ऐसे पाँच प्रकारों की चर्चा है।
९४वें द्वार में निर्ग्रन्थ, शाक्य, तापस, गैरूक, और आजीवक ऐसे पाँच प्रकार के श्रमणों की चर्चा
९५वे द्वार में संयोजन, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण ऐसे ग्रासैषणा के पाँच दोषों का विवेचन किया गया है। मुनि को भोजन करते समय स्वाद के लिये भोज्य पदार्थों का सम्मिश्रण करना, परिमाण से अधिक आहार करना, भोज्य पदार्थों में राग रखना, प्रतिकूल भोज्य पदार्थों की निन्दा करना और अकारण आहार करना निषिद्ध है।
९६वें द्वार में पिण्ड-पाणैषणा के सात प्रकारों का उल्लेख हुआ है। ९७वे द्वार में भिक्षाचर्या अष्टक अर्थात् भिक्षाचर्या के आठ प्रकारों का विवेचन किया गया है। ९८३ द्वार में दस प्रायश्चितों का विचेचन किया गया है। दस प्रायश्चित निम्न हैं
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