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प्रवचन-सारोद्धार
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घर्षण होता है, शरीर पर रज आदि लगती है, अत: संस्तारक आवश्यक है। केवल ऊनी संथारे पर सोने में उसके कठोर स्पर्श से कपड़े में रही हुई जू को पीड़ा होती है, अत: उत्तरपट्टे
की आवश्यकता है ।। ५००-५१८ ॥ साधुओं के प्रकार- उपकरण एवं योग्यता के भेद से मुनि के चार प्रकार हैं
१. जिनकल्पिक, २. स्थविरकल्पिक, ३. स्वयंबुद्ध, और ४. प्रत्येकबुद्ध । (१-२) जिनकल्पिक,
- जिनकल्पी के उपकरणों का वर्णन साठवें द्वार में है । स्थविरकल्पी स्थविरकल्पिक
का इसी द्वार में सर्वप्रथम बताया गया है। अत: यहाँ स्वयं बुद्ध
और प्रत्येकबुद्ध का ही वर्णन किया जायेगा। (३) स्वयंबुद्ध
जिन्हें ज्ञान प्राप्त करने में किसी अन्य के उपदेश की अपेक्षा नहीं होती, वे स्वयंबुद्ध हैं। स्वयंबुद्ध दो तरह के हैं, तीर्थकर व सामान्य मुनि । यहाँ सामान्य मुनिरूप स्वयंबुद्ध की ही चर्चा है। स्वयंबुद्ध और प्रत्येकबुद्ध में बोधि, उपधि, श्रुत और लिंग इन
चार बातों की अपेक्षा से भेद है(i) बोधि - स्वयंबुद्ध को जाति-स्मरणादि आन्तरिक निमित्त से सम्यक्त्व की
प्राप्ति होती है। (ii) उपधि
- (१) मुहपत्ति (२) रजोहरण (४) कल्प त्रिक और सात प्रकार की
पात्र सम्बन्धी उपधि = बारह उपकरण होते हैं। (iii) श्रुत
- स्वयंबुद्ध को जाति-समरण आदि के द्वारा पूर्व जन्म में अधीत
श्रुत स्मरण में आ जाता है या नया अध्ययन करते हैं। पूर्वाधीत श्रुत वाले स्वयंबुद्ध मुनि, इच्छा होती है तो गच्छ में रहते हैं अन्यथा एकाकी विहार करते हैं, किंतु नया अध्ययन करने वाले
गच्छ में ही रहते हैं। (iv) लिंग - जिसका श्रुत-ज्ञान पूर्व पठित होता है, उस स्वयंबुद्ध को दीक्षा
के समय रजोहरण आदि या तो देवता देते हैं या गुरु देते हैं किंतु जिसका श्रुतज्ञान पूर्वाधीत नहीं होता उसका वेश निश्चित
ही गुरु प्रदत्त होता है ।। ५१९-५२३ ॥ (४) प्रत्येकबुद्ध
- स्वयंबुद्ध की तरह प्रत्येकबुद्ध के भी चार भेद हैं(i) बोधि
- प्रत्येकबुद्ध को सम्यक्त्व की प्राप्ति बाह्य कारणों से ही होती है
जैसे बादलों की बनती बिगड़ती रचना देखकर, बसंत-ऋतु में हरे-भरे पेड़ को पतझड़ में ढूंठ रूप में देखकर उसे संसार से विरक्ति हो जाती है।
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