________________
प्रवचन - सारोद्धार
९. . रजस्त्राण
प्रयोजन
१०-१२. तीन कल्प
प्रयोजन
१३. मात्रक
प्रस्थ-प्रमाण
प्रयोजन
Jain Education International
-
-
-
२३१
स्निग्ध और इतने गाढ़े होने चाहिए कि सभी को एकत्रित करके देखा जाय तो सूर्य न दिखे ।
पात्र के प्रमाणानुसार होता है अर्थात् प्रदक्षिणाकार से पात्रों को वेष्टित करने पर चार अंगुल प्रमाण वस्त्र का छोर लटकता रहे । चूहे आदि से कुरेदी हुई मिट्टी और वर्षा की बूंदें, तुषार कण, सचित्त रज आदि से पात्रों की रक्षा के लिए रजस्त्राण आवश्यक है ।
कल्प अर्थात् चादर, दो सूती और एक ऊनी । शरीर प्रमाण अर्थात् साढ़े तीन हाथ लम्बी और ढाई हाथ चौड़ी होती है । शीतकाल में सर्दी से अत्यंत पीड़ित मुनि तीन कल्प ओढ़कर शीत से अपना बचाव कर सकता है तथा मन की समाधि को टिका सकता है। कल्प के अभाव में अत्यंत सर्दी से पीड़ित मुनि घास आदि का ग्रहण, अग्नि आदि का उपयोग करे तो जीवों की विराधना होगी। शीत से पीड़ित मुनि धर्म - शुक्ल - ध्यान शांतिपूर्वक नहीं कर सकेगा। सर्दी से मुनि बीमार पड़ जायेगा, बीमार अधिक बीमार होगा। इस प्रकार संयम यात्रा के साधनभूत शरीर की रक्षा के लिए ग्लानादिकों की शांति के लिये एवं मृतक को ओढ़ाने के लिए कल्प की आवश्यकता है, अन्यथा व्यवहार विरुद्ध होगा ।
मगध देश में प्रसिद्ध प्रस्थ प्रमाण वस्तु से अधिक वस्तु जिसमें ' समा सके, मात्रक इतना बड़ा होना चाहिये ।
दो असती = एक प्रसृति (एक पसली ) दो प्रति = एक सेतिका
चार सेतिका = एक कुलब
चार कुलब = एक प्रस्थ (मगध देश का प्रमाण)
अथवा दो कोष से विहार करके या उपनगर, गोकुल आदि दो कोष दूर के स्थानों से गौचरी आदि लेकर आये हुए मुनि की क्षुधा शान्त करने के लिए जितने दाल-भात पर्याप्त हों, उतने जिसमें समा सके, मात्रक इतने प्रमाण वाला होना चाहिये ।
वर्षाकाल और शीतोष्ण काल में आचार्य, ग्लान आदि के योग्य द्रव्य लाने के लिए मात्रक की आवश्यकता है। यदि गाँव में आचार्य आदि के योग्य द्रव्य सहज में मिल सकता हो तो मात्रक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org