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________________ द्वार ६१ २३० - तीनों ही एक बेंत चार अंगुल प्रमाण वाले होते हैं ५-७. पात्र स्थापनक, गुच्छा, पात्र केसरिका (पूँजणी) प्रयोजन --- रज आदि से रक्षा के लिए पात्रस्थापन की, रज आदि से रक्षा और पात्र-सम्बन्धी वस्त्रों (झोली-पड़ला) की पडिलेहणा के लिये गुच्छों की तथा पात्रों की प्रमार्जना के लिए पूँजणी की आवश्यकता 39 ८. पटला ढाई हाथ लम्बे और एक हाथ बारह अंगुल चौड़े होने चाहिए अथवा शरीर और पात्र के प्रमाणानुसार लम्बाई, चौड़ाई वाले होने चाहिये। स्वरूप से पड़ले केले के गर्भ के समान सफेद, मोटे, कोमल, मजबूत, स्निग्ध होने चाहिए। स्वरूप की अपेक्षा से भिन्न-भिन्न ऋतुओं में पड़लों का परिमाण भी भिन्न-भिन्न होता है। स्वरूप की अपेक्षा पड़ले, जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद से तीन प्रकार के हैंपड़ला ग्रीष्म हेमंत वर्षा उत्कृष्ट - मजबूत, गाढ़े और स्निग्ध ३ ४ । मध्यम - कुछ जीर्ण जघन्य - जीर्ण ग्रीष्म काल अत्यन्त रुक्ष होने से उस समय सचित्त रज आदि शीघ्र ही अचित्त बन जाते हैं। अल्प समय में आहार तक नहीं पहुँच सकते। अत: ग्रीष्म काल में उत्कृष्ट तीन, मध्यम चार और जघन्य पाँच पड़ले पर्याप्त हैं। • हेमंत काल स्निग्ध होने से सचित्त रज शीघ्र ही अचित्त रूप में परिणत नहीं होती अत: सचित्त रज आदि की पटलों को भेद कर आहार तक पहुँचने की संभावना रहती है। इसलिये - इस ऋतु में उत्कृष्ट स्वरूप वाले चार, मध्यम पाँच और जघन्य छः पड़ले होते हैं। वर्षाकाल अत्यन्त स्निग्ध होने से सचित्त रजादि की अचित्त रूप में परिणति बहुत समय के बाद में होती है। अत: वर्षाकाल में उत्कृष्ट स्वरूप वाले पाँच, मध्यम छ: और जघन्य सात पड़ले होते हैं। प्रयोजन - पात्र को ढंकने के लिये, हवा के कारण गिरने वाले सचित्त फल, फूल, पत्र एवं सचित्त रज से आहार की रक्षा के लिये, उड़ते हुए पक्षियों के पुरीष, मूत्र आदि से आहार को बचाने के लिये, संपातिम जीवों की रक्षा के लिए तथा वेदोदय होने पर विकृत लिंग को ढंकने के लिए पड़लों की आवश्यकता होती है । पड़ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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