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________________ प्रवचन-सारोद्धार २२९ रजोहरण एकांगिक अर्थात् ओघे की दशियाँ एक ही वस्त्र से बनी हुई होनी चाहिये, अशुषिर अर्थात् रोमवाली या गाँठवाली नहीं होनी चाहिये । 'पोरायामम्' अर्थात् अंगूठे और तर्जनी की गोलाई में समा सके, इतनी मोटाई वाला मध्य में डोरों के तीन आंटों से युक्त ऐसा रजोहरण रखना चाहिये। 'अप्पोलं' अर्थात् दृढ़ बँधा हुआ होने से अशुषिर, पोल रहित, कोमल दशीवाला, बाह्य दो निषद्या से युक्त, संपूर्ण एक हाथ प्रमाण, अंगूठा व तर्जनी की गोलाई में समाने वाला, ऐसा रजोहरण बनाना चाहिये। जबकि आप द्वारा स्वीकृत रजोहरण का स्वरूप आगम में कहीं भी नहीं बताया है। अत: ऐसा रजोहरण रखने वाले आपको परमात्मा की आज्ञा का भंग करने से मिथ्यात्व लगेगा। अत: अशठ गीतार्थों के द्वारा आचरित आचार का स्वीकार आपको भी अवश्य करना चाहिये। प्रयोजन - वस्तु को लेते या रखते, उठते-बैठते, हाथ-पाँव का संकोचन और प्रसार करते समय मक्खी, मच्छर आदि संपातिम जीवों की हिंसा . न हो जाये, इस हेतु से वस्तु, शरीर और भूमि की प्रमार्जना के लिए रजोहरण उपयोगी होता है। यह दीक्षा का मुख्य चिह्न है। ३. पात्रक - तीन बेंत और चार अंगल (पात्र की गोलाई चारों ओर से डोरे से नापने पर तीन बेंत और चार अंगुल होना चाहिये), यह पात्र का मध्यम-प्रमाण है । इसके अतिरिक्त पात्र गोलाई वाला, मजबूत, छेदरहित, स्निग्ध-वर्ण वाला और लक्षणोपेत होना चाहिए। पात्र तीन प्रकार के प्रमाण वाला होता है१. जघन्य - तीन बेंत और चार अंगुल से न्यून-प्रमाण वाला। . २. मध्यम -- तीन बेंत और चार अंगुल प्रमाण वाला। ३. उत्कृष्ट - तीन बेंत और चार अंगुल से अधिक प्रमाण वाला। प्रयोजन - छ: काय जीवों की रक्षा के लिए पात्र की आवश्यकता है। बिना पात्र के गौचरी करने से जीव-विराधना होती है। पात्र रखने के अनेक गुण हैं, जैसे पात्र हो तो गुरु, ग्लान बाल-मुनि, गौचरी जाने में असमर्थ ऐसे राजपुत्रादि तथा आगन्तुक मुनियों को भिक्षा लाकर दी जा सकती है। इस प्रकार मंडली में बैठकर.गौचरी करने के जो गुण सिद्धान्त में बताये हैं, वे ही गुण पात्र रखने के हैं। यदि पात्र न रखे जायें तो ग्लानादि के लिए भिक्षा लाना कैसे संभव होगा? ४.पात्र बंधक - पात्र के प्रमाणानुसार अर्थात् बांधने पर चार अंगुल छोर लटकता रहे। प्रयोजन -- रज आदि की रक्षा के लिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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