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________________ २२६ द्वार ६१ -गाथार्थस्थविरकल्पियों के उपकरण की संख्या-मुहपत्ति, रजोहरण, ३ कल्प और सप्तविध पात्रनिर्योग इन बारह उपकरणों के साथ मात्रक और चोलपट्टा इन दो उपकरणों को मिलाने पर १४ प्रकार की उपधि स्थविरकल्पी की होती है ।।४९९ ।। ३ बेंत और ४ अंगुल परिधि वाला पात्र मध्यम परिमाण वाला है। इससे न्यून जघन्य परिमाण वाला तथा इससे अधिक पात्र उत्कृष्ट परिमाण वाला होता है ।।५०० ॥ झोली का परिमाण पात्र के अनुसार होता है। जैसे, झोली की गाँठ लगा देने के पश्चात् उसके छोर चार अंगुल लटकते रहने चाहिये ।।५०१ ॥ पात्रस्थापनक, गुच्छे एवं पूँजनी का परिमाण १ बेंत ४ अंगुल है ॥५०२ ।। सामान्यत: ढाई हाथ लंबे और छत्तीस अंगुल चौड़े पड़ले होते हैं अथवा पड़लों का परिमाण पात्र एवं अपने शरीर के अनुसार होता है। ग्रीष्म, हेमन्त और वर्षा ऋतु में जीवों की रक्षा के लिये, केले के के समान उत्कष्य मध्यम और जघन्य संख्यावाल पडले अवश्य रखना चाहिये। ग्रीष्मस्त में ३-४-५ हेमन्तऋतु में ४-५-६ तथा वर्षा ऋतु में ५-६-७ पडले होते हैं। पड़ले मोटे और स्निग्ध होने चाहिये ।।५०३-५०५ ।। रजस्त्राण का परिमाण पात्र के परिमाण के अनुसार होता है। पात्रों को रजस्त्राण से प्रदक्षिणाकार में लपेटने पर रजस्त्राण चार अंगुल बड़ा रहे ।।५०६ ।। चद्दर शरीर परिमाण होती है अर्थात् साढ़े तीन हाथ लंबी एवं ढाई हाथ चौड़ी होती है। चद्दर दो सूत की एवं एक ऊन की होती है ।। ५०७ ।। रजोहरण बत्तीस अंगुल परिमाण होता है। सामान्यत: दंडी चौबीस अंगुल की तथा फलियाँ आठ अंगुल की होती हैं। अथवा दंडी और फलियाँ पूर्वोक्त परिमाण से न्यूनाधिक भी हो सकती है पर ओघे का कुल माप बत्तीस अंगुल का ही होना चाहिए ।।५०८ ।। मुहपत्ति का परिमाण एक बेंत और चार अंगुल का है। किसी का मत है कि मुहपत्ति मुख के अनुसार होनी चाहिये ।।५०९ ॥ ___ मगध देश सम्बन्धी प्रस्थ के परिमाण से मात्रक कुछ बड़ा होता है। मात्रक वर्षाकाल और शीतोष्णकाल दोनों में ही आचार्य आदि के लिये द्रव्यग्रहण करने में उपयोगी होता है ।।५१० ।। अथवा दो कोस चलकर आया हुआ मुनि जितने दाल-भात एक स्थान में बैठकर वापर सकता है उतने परिमाण वाला मात्रक होता है ।।५११ ।। । चोलपट्टा दो हाथ या चार हाथ परिमाणवाला, समचौरस होता है। कपड़े की दृष्टि से पतला और मोटा दोनों होता है। ये भेद वृद्धमुनि और युवामुनि की अपेक्षा से समझना चाहिये ॥५१२ ।। संस्तारक और उत्तरपट्ट दोनों ढाई हाथ लंबे और एक हाथ चार अंगुल चौड़े होते हैं ।। ५१३ ॥ वस्तु लेने, उठाने, खड़े रहने, बैठने, करवट बदलने, पाँव फैलाने या एकत्रित करने से पूर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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