________________
प्रवचन - सारोद्धार
Jain Education International
नासं मुहं च बंधइ तीए वसहिं पमज्जंतो ॥५१५ ॥ छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहणं जिणेहिं पन्नत्तं । जे य गुणा संभोगे हवंति ते पायगहणेऽवि ॥५१६ ॥ तणगहणानलसेवानिवारणा धम्मसुक्कझाणट्ठा । दिट्ठे कप्परगहणं गिलाणमरणट्ठया चेव ॥५१७ ॥ वेव्वऽवाउडे वाइए य ही खद्धपजणणे चेव ।
सिं अणुग्गहट्ठा लिंगुदयट्ठा य पट्टो य ॥५१८ ॥ अवरेवि सयंबुद्धा हवंति पत्तेयबुद्धमुणिणोऽवि । पढमा दुविहा एगे तित्थयरा तदियरा अवरे ॥५१९॥ तित्थयरवज्जियाणं बोही उवही सुयं च लिंगं च । नेयाइँ तेसि बोही जाइस्सरणाइणा होइ ॥ ५२० ॥ मुहपत्ती रयहरणं कप्पतिगं सत्त पायनिज्जोगो । इय बारसहा उवही होइ सयंबुद्धसाहूणं ॥५२१ ॥ हवइ इमेसि मुणीणं पुव्वाहीयं सुअं अहव नत्थि । जइ होइ देवया से लिंगं अप्प अहव गुरुणो ॥ ५२२ ॥ जइ एगागीविहु विहरणक्खमो तारिसी व से इच्छा । तो कुणइ तमन्नहा गच्छवासमणुसरइ निअमेणं ॥५२३ ॥ पत्तेयबुद्धसाहूण होइ वसहाइदंसणे बोही । पोत्तियरयहरणेहिं तेसिं जहण्णो दुहा उवही ॥ ५२४ ॥ मुहपत्ती रयहरणं तह सत्त य पत्तयाइनिज्जोगो । उक्कोसोऽवि नवविहो सुयं पुणो पुव्वभवपढियं ॥५२५ ॥ एक्कारस अंगाई जहन्नओ होइ तं तहुक्कोसं । देसेण असं पुन्नाई हुंति पुव्वाई दस तस्स ॥ ५२६ ॥ लिंगं तु देवया देइ होइ कइयावि लिंगरहिओवि । एगागी च्चिय विहरइ नागच्छ गच्छावासे सो ॥५२७ ॥
For Private & Personal Use Only
२२५
www.jainelibrary.org