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प्रवचन-सारोद्धार
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६. वैमानिक देवता में से निकलकर पुरुष बने हुए
१०८ सिद्ध ७. पृथ्वीकाय, अप्काय व पंकप्रभा से निकले हुए
४-४ सिद्ध ८. रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा से निकले हुए
१० सिद्ध ९. धूमप्रभा, तमप्रभा व तमस्तमप्रभा से निकले हुए
सिद्ध नहीं होते
तथास्वभावात् । १०. वनस्पतिकाय से निकले हुए
६ सिद्ध तेउ-वायु से निकले हुए आत्मा अनन्तर भव में मनुष्य नहीं बन सकते, अत: उनके सिद्धिगमन का प्रश्न ही नहीं उठता। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, और चतुरिन्द्रिय भी तथाविध स्वभाव के कारण अनन्तर भव में मोक्ष नहीं जाते क्योंकि वे मरकर मनुष्य नहीं बनते।
प्रज्ञापनापद में भी यही कहा है- जघन्यत: १-२-३ सिद्ध होते हैं। सिद्धप्राभृत के मतानुसार
देवगति के सिवाय अन्य तीनों गतियों में से आने वाले आत्मा १......१० सिद्ध होते हैं। कहा है—“सेसाण गईण दसदसंगति ।” (गाथा-४८) तत्त्वं तु श्रुतविदो विदन्ति ।।
यहाँ पुरुषवेदी देव आदि में से निकलकर कुछ जीव दूसरे भव में पुरुष, स्त्री या नपुंसक बनते हैं। इस प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेद से निकलने वालों की भी त्रिभंगी बनती है। अत: तीनों वेदों के कुल मिलाकर ९ भांगे बनते हैं। इनमें से
१. देव में से निकलकर पुरुष बनने वाले एक समय में =१०८ सिद्ध होते हैं। २. मनुष्य या तिर्यंच पुरुष में से निकलकर पुरुष बनने वाले....
.... = १०...१० सिद्ध होते हैं। एक समय में ३. चारों गति के पुरुष में से स्त्री तथा नपुंसक बनने वाले १०...१० सिद्ध होते हैं ४. चारों गति की स्त्री में से निकलकर पुरुष, स्त्री और नपुंसक बनने वाले..
......... १...१० सिद्ध होते हैं। ५. चारों गति के नपुंसक में से पुरुष, स्त्री और नपुंसक बनने वाले
१०....१० सिद्ध होते हैं। "वैमानिक, ज्योतिष और मनुष्य स्त्री में से आये हुए पुरुष २० सिद्ध होते हैं" यह कथन तीनों वेदों की अपेक्षा से समझना अर्थात् वैमानिक, ज्योतिष और मनुष्य स्त्री में से निकलकर पुरुष, नपुंसक और स्त्री बने हुए सम्मिलित २० सिद्ध होते हैं। ___ "स्त्रीलिंग में २० सिद्ध होते हैं" यह कथन तीनों लिंगों में से निकलकर स्त्री बने हुए की अपेक्षा से समझना। १. नन्दनवन में एक समय में ४ सिद्ध होते हैं।
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