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________________ द्वार ५३ २१४ ५३. द्वार: तीन वेद सिद्ध वीसित्थीगाउ पुरिसाण अट्ठसयं एगसमयओ सिज्झे। दस चेव नपुंसा तह उवरिं समएण पडिसेहो ॥४७९ ॥ वीस नरकप्पजोइस पंच य भवणवण दस य तिरियाणं । इत्थीओ पुरिसा पुण दस दस सव्वेऽवि कप्पविणा ॥४८० ॥ कप्पट्ठसयं पुहवी आऊ पंकप्पभाउ चत्तारि। रयणाइसु तिसु दस दस छ तरुणमणंतरं सिज्झे ॥४८१ ॥ -गाथार्थस्त्री पुरुष नपुंसकलिंग में सिद्ध संख्या—एक समय में उत्कृष्ट से स्त्रियाँ २०, पुरुष १०८ और नपुंसक १० सिद्ध होते हैं। इससे अधिक सिद्ध नहीं होते। विशेष यह है कि वैमानिक या ज्योतिष । में से आगत स्त्रियाँ ही २० सिद्ध होती हैं, पर भवनपति व्यंतर में से आगत स्त्रियाँ ५ तथा तिर्यंच में से आगत स्त्रियाँ १० ही सिद्ध होती हैं। नरक, मनुष्य, ज्योतिष भवनपति, व्यन्तर एवं तिर्यंच में से आगत पुरुष एक समय में उत्कृष्ट से १० सिद्ध होते हैं। वैमानिक देव में से आगत पुरुष एक समय में १०८ सिद्ध होते हैं। पृथ्वीकाय, अप्काय तथा पंकप्रभा नरक में से आगत पुरुष एक समय में ४ सिद्ध होते हैं। रत्नप्रभा आदि प्रथम ३ नरक में से आगत पुरुष १० सिद्ध होते हैं और वनस्पतिकाय से आगत पुरुष छ: सिद्ध होते हैं ।।४७९-४८१. ।। -विवेचन१. पुरुषवेद में..... एक समय में.....१०८ सिद्ध होते हैं। २. स्त्रीवेद में ....... एक समय में.....२० सिद्ध होते हैं। ३. नपुंसकवेद में...एक समय में.....१० सिद्ध होते हैं। इसके बाद समान लिंग वालों की सिद्धि का अवश्य अन्तर पड़ता है। किस गति से निकले हुए जीव एक समय में उत्कृष्टत: कितने सिद्ध होते हैं? १. मनुष्य स्त्री में से निकले हुए २०सिद्ध . २. ज्योतिषी, सौधर्म, ईशान देवलोक की देवी में से निकले हुए २०सिद्ध ३. दश भवनपति तथा बत्तीस व्यन्तरनिकाय की देवी में से निकले हुए ५-५ सिद्ध ४. पंचेन्द्रिय तिर्यच स्त्री में से निकले हुए १०सिद्ध ५. भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी, मनुष्य व तिर्यंच पुरुष में से निकले हुए १०सिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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