________________
प्रवचन-सारोद्धार
२१३
४९ से ६०.....६ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं।
पहले समय में ४९-५०, यावत् ६० सिद्ध होते हैं। दूसरे समय में ४९-५०, यावत् ६० सिद्ध होते हैं। तीसरे समय में ४९-५०, यावत् ६० सिद्ध होते हैं।
इस प्रकार ६ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं। बाद में अवश्य अन्तर पड़ता है। ६१ से ७२ पर्यन्त...... ५ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं।
पहले समय में ६१-६२, यावत् ७२ सिद्ध होते हैं। दूसरे समय में ६१-६२, यावत् ७२ सिद्ध होते हैं। तीसरे समय में ६१-६२, यावत् ७२ सिद्ध होते हैं।
इस प्रकार ५ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं। बाद में अवश्य अन्तर पड़ता है। ७३ से ८४ पर्यन्त...... ४ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं।
पहले समय में ७३-७४, यावत् ८४ सिद्ध होते हैं। दूसरे समय में ७३-७४, यावत् ८४ सिद्ध होते हैं। तीसरे समय में ७३-७४, यावत् ८४ सिद्ध होते हैं।
इस प्रकार ४ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं। बाद में अवश्य अन्तर पड़ता है। ८५ से ९६ पर्यन्त..... ३ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं।
पहले समय में ८५-८६, यावत् ९६ सिद्ध होते हैं। दूसरे समय में ८५-८६, यावत् ९६ सिद्ध होते हैं।
तीसरे समय में ८५-८६, यावत् ९६ सिद्ध होते हैं। बाद में अवश्य अन्तर पड़ता है। ९७ से १०२ पर्यन्त...... २ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं।
पहले समय में ९७-९८, यावत् १०२ सिद्ध होते हैं।
दूसरे समय में ९७-९८, यावत् १०२ सिद्ध होते हैं। बाद में अवश्य अन्तर पड़ता है। १०३ से १०८ ...... १ समय में सिद्ध होते हैं।
बाद. में अवश्य अन्तर पड़ता है। मुक्तिगमन का जघन्य अन्तर ........ .............३ आदि समय का होता है। उत्कृष्टत: अन्तर ६ मास का है। वहाँ तक कोई भी सिद्ध नहीं होता है ॥ ४७७-४७८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org