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________________ प्रवचन-सारोद्धार २११ जघन्य अवगाहना वाले आत्मा एक समय में = ४ सिद्ध होते हैं। जघन्य अवगाहना = २ हाथ मध्यम अवगाहना वाले आत्मा एक समय में = १०८. सिद्ध होते हैं। मध्यम अवगाहना = जघन्य से उत्कृष्ट के बीच की। प्रश्न–नाभिकुलकर की अवगाहना ५२५ धनुष की थी तथा कुलकर की पत्नी की अवगाहना कुलकर की अवगाहना के समान होने से, जैसा कि कहा है—“संघयणं संठाणं उच्चत्तं चैव कुलगरेहि समं" मरुदेवी की अवगाहना भी ५२५ धनुष की थी। वे भी सिद्ध बनी हैं अत: सिद्ध होने वालों की उत्कृष्ट अवगाहना ५०० धनुष की कैसे संगत होगी? उत्तर-उत्तम संस्थान वाली स्त्रियाँ उत्तम संस्थान वाले पुरुषों की अपेक्षा किंचित् न्यून प्रमाण वाली होती हैं अत: मरुदेवी की अवगाहना ५०० धनुष की ही सिद्ध होती है। इससे मरुदेवी के सिद्भिगमन में कोई विरोध नहीं आता। ' मरुदेवी हाथी पर सिद्ध हुई थी उस समय उनका शरीर संकुचित होने से अधिक अवगाहना की संभावना नहीं रहती अथवा आगम में उत्कृष्ट अवगाहना जा ५०० धनुष की कही गई है वह बाहुल्य की अपेक्षा से समझना चाहिये, अत: मरुदेवी के समय में सिद्भिगमन की उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष की भी हो सकती है। क्योंकि मतान्तर से मरुदेवी की अवगाहना नाभिकुलकर के तुल्य है। जैसा कि सिद्धप्राभृत की टीका में कहा है- “मरुदेवी की अवगाहना मतान्तर से नाभिकुलकर के समान है।" सिद्धप्राभृत सूत्र में भी कहा है कि ओगाहणा जहन्ना, रयणीदुगं अहपुणाइ उक्कोसा। पंचव धणुसयाई, धणुह पुहुत्तेण अहियाई ।। सिद्ध होनेवालों की जघन्य अवगाहना दो हाथ की है। उत्कृष्ट अवगाहना पाँच सौ धनुष व धनुषपृथक्त्व अधिक पाँच सौ धनुष की है। यहाँ पृथक्त्व का अर्थ बहुत्व है और बहुत्व से पच्चीस धनुष लिया गया है अत: उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष की भी हो सकती है ॥ ४७५ ॥ ५१. द्वार : लिंग-सिद्ध इह चउरो गिहिलिंगे दसऽन्नलिंगे सयं च अट्ठहियं । विन्नेयं च सलिंगे समएणं सिज्झमाणाणं ॥४७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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