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द्वार ४९-५०
२१०
स्त्रीलिंग में सिद्धि नहीं हो सकती और स्त्री की वेशभूषा अप्रामाणिक है। अत: स्त्री-शरीर से सिद्ध होनेवाला ही स्त्रीलिंग सिद्ध कहलाता है। ८. पुरुषलिंग सिद्ध
शारीरिक दृष्टि से पुरुषवेद में सिद्ध । ९. गृहलिंग सिद्ध
गृहस्थ वेष में सिद्ध होने वाले जैसे माता मरुदेवी,
भरत आदि १०. नपुंसकलिंग सिद्ध
शारीरिक दृष्टि से नपुंसक वेद में सिद्ध ११. प्रत्येकबुद्ध सिद्ध किसी वस्तु विशेष को देखने से विरक्त बनकर सिद्ध
होने वाले १२. स्वयंबुद्ध सिद्ध - स्वत: बोध प्राप्त कर सिद्ध होने वाले १३. बुद्धबोधित सिद्ध - आचार्य आदि के द्वारा बोध पाकर सिद्ध होने वाले १४. एक सिद्ध
एक समय में अकेले ही सिद्ध होने वाले १५. अनेकसिद्ध
एक समय में अनेकों के साथ सिद्ध होने वाले तीर्थ का विच्छेद होने के बाद सिद्ध होने वाले आत्मा का समावेश अतीर्थ सिद्ध में होता है। सुविधिनाथ आदि परमात्मा के बाद जो तीर्थ का विच्छेद हुआ उस काल में जो आत्मा जाति-स्मरणादि के द्वारा विरक्त होकर सिद्ध बने, वे सभी अतीर्थ सिद्ध हैं।
प्रश्न–सिद्ध के पूर्वोक्त १५ प्रकारों का समावेश तीर्थ सिद्ध और अतीर्थ सिद्ध इन दो भेदों में ही हो सकता है, १५ भेद कहने की क्या आवश्यकता है?
उत्तर—यद्यपि पूर्वोक्त दो भेदों में सिद्ध के सभी भेदों का समावेश हो सकता है तथापि उन भेदों से शेष १३ भेदों का परिज्ञान सहज में होना अशक्य है अत: सहज परिज्ञान के लिये अलग-अलग . भेदों को बताना आवश्यक है ॥ ४७३-४७४ ।।
५०. द्वार:
अवगाहना
दो चेवुक्कोसाए चउर जनाए मज्झिमाए उ। अट्ठाहियं सयं खलु सिज्झइ ओगाहणाइ तहा ॥४७५ ॥
-गाथार्थअवगाहना में सिद्ध-उत्कृष्ट अवगाहना वाले जीव एक समय में दो सिद्ध होते हैं। जघन्य अवगाहना वाले चार तथा मध्यम अवगाहना वाले एक सौ आठ सिद्ध होते हैं ।।४७५ ।।
-विवेचनउत्कृष्ट अवगाहना वाले आत्मा एक समय में = २ सिद्ध होते हैं।
उत्कृष्ट अवगाहना = ५०० धनुष
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