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________________ प्रवचन - सारोद्धार ४९. द्वार : तित्थयर अतित्थयरा तित्थ सलिंगऽन्नलिंग थी पुरिसा । गिहिलिंग नपुंसक अतित्थसिद्ध पत्तेयबुद्धा य ॥४७३ ॥ एग अग सयंबुद्ध बुद्धबोहिय पभेयओ भणिया । सिद्धते सिद्धाणं भेया पन्नरससंखत्ति ॥ ४७४ ॥ -गाथार्थ सिद्धों के १५ भेद - १. तीर्थंकर सिद्ध २. अतीर्थंकर सिद्ध ३. तीर्थसिद्ध ४. स्वलिंगसिद्ध ५. अन्यलिंग सिद्ध ६. स्त्रीलिंगसिद्ध ७. पुरुषलिंगसिद्ध ८. गृहस्थलिंगसिद्ध ९. नपुंसकलिंग सिद्ध १०. अतीर्थसिद्ध ११. प्रत्येकबुद्धसिद्ध १२. एकसिद्ध १३. अनेकसिद्ध १४. स्वयंबुद्धसिद्ध १५. * बुद्धबोधितसिद्ध - इस प्रकार सिद्धान्त में सिद्धों के १५ भेद बताये हैं ।। ४७३-४७४ ।। -विवेचन तीर्थंकर अवस्था में सिद्ध होने वाले सामान्य केवली अवस्था में सिद्ध होने वाले संघ व प्रथम गणधर की स्थापना के पश्चात् सिद्ध होने वाले संघ की स्थापना से पूर्व सिद्ध होने वाले जैसे मरुदेवी माता स्त्रीलिंग तीन प्रकार से होता है १. तीर्थंकर सिद्ध २. अतीर्थंकर सिद्ध ३. तीर्थ सिद्ध ४. अतीर्थ सिद्ध ५. स्वलिंगसिद्ध ६. अन्यलिंगसिद्ध है, किंतु जो केवलज्ञान जो अन्य लिंगी, केवलज्ञान होने के बाद तुरंत काल कर जाता है, वही अन्यलिंग सिद्ध हो सकता बाद आयु-कर्म अधिक होने से काल नहीं करता वह अवश्य साधु-वेष धारण करता है और अन्त में स्वलिंग सिद्ध ही बनता है । ७. स्त्रीलिंग सिद्ध शारीरिक दृष्टि से स्त्रीवेद में सिद्ध । सिद्ध-भेद (१) स्त्रीवेदकर्म से जन्य पुरुष के संभोग की इच्छा (२) शारीरिक रचना तथा Jain Education International २०९ साधुवेष में सिद्ध होने वाले परिव्राजक आदि के वेष में सिद्ध होने वाले (३) स्त्री की वेशभूषा पहनने से । यहाँ शारीरिक रचनारूप स्त्रीलिंग का ग्रहण किया गया है। अन्य दो का नहीं । कारण, वेदोदयजन्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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