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प्रवचन - सारोद्धार
१३.
X
निष्कषाय
निष्पुलाक
निर्मम
संवर
यशोधर
विजय
मल्लि
देव
१४.
१५.
१६. चित्रगुप्त
१७.
समाधि
१८.
१९.
२०.
कृष्ण
२१.
नारद
२२.
अम्बड
२३.
अनन्तवीर्य
अमर
२४.
भद्रजिन
स्वातिबुद्ध
श्रीचन्द्रसूरि नामक आचार्यदेव के द्वारा उत्सर्पिणीकाल में होने वाले भावी तीर्थंकर परमात्मा की नामोल्लेखपूर्वक स्तुति की गई । वे परमात्मा सदाकाल सभी के लिये सुखदाता व शुभदाता बने । भावी तीर्थंकरों के विषय में तथाविध परंपरा के अभाव में तथा अन्य शास्त्रों में अलग-अलग वर्णन होने के कारण विशेष वर्णन नहीं किया ।। ४५७-४७० ।।
४७. द्वार :
तीन लोक में सिद्ध
लोक संख्या १. ऊर्ध्व लोक में
में
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चत्तारि उड्डलो दुवे समुद्दे तओ जले चेव । बावीसमहोलोए तिरिए अट्टुत्तरसयं तु ॥४७१ ॥ -गाथार्थ
ऊर्ध्व-अधो एवं तिर्यक्लोक में सिद्ध होने वालों की संख्या - उर्ध्वलोक में चार, समुद्र में दो, शेष जल में तीन, अधोलोक में बावीस, तथा तिर्यक् लोक में एक समय में एक सौ आठ सिद्ध होते हैं । ४७१ ।।
२. समुद्र
३. द्रव, नदी, वाव आदि में
४. अधोलोक में
वासुदेव
बलदेव
-विवेचन
एक समय में उत्कृष्ट सिद्ध संख्या
४
12 12
२
सुलसा
रोहिणी
रेवती
सतालि
द्वीपायन
३
२२
२०७
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