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द्वार ४६
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-गाथार्थभावी चौबीसी के जीव-भगवान महावीर के निर्वाण के ८४००० वर्ष के पश्चात् पद्मनाभ आदि २४ तीर्थंकर जिस क्रम से होंगे उस क्रम से नामग्रहणपूर्वक मैं उनको नमस्कार करता हूँ॥४५७ ॥
__श्री चन्द्रसूरि नामक आचार्यदेव के द्वारा नामोल्लेखपूर्वक स्तुति किये गये उत्सर्पिणी के चौबीस तीर्थंकर परमात्मा सदाकाल सुखदायक बनें ॥४७० ।।
-विवेचनसारांश यह है कि अवसर्पिणी के चतुर्थ आरे के ८९ पक्ष शेष रहने पर भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। तत्पश्चात् २१-२१ हजार वर्ष परिमाणवाले अवसर्पिणी के पाँचवें-छठे आरे तथा उत्सर्पिणी के पहले-दूसरे आरे एवं तीसरे आरे के ८९ पक्ष व्यतीत होने पर भावी चौबीसी के प्रथम तीर्थकर श्री पद्मनाभ स्वामी का जन्म होगा ॥४५७ ॥
वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के ८९ पक्ष शेष रहने पर भगवान महावीर का निर्वाण हुआ। भगवान् के निर्वाण के ८४००० वर्ष पश्चात् (उत्सर्पिणी के तीसरे आरे के ८९ पक्ष बीतने पर) पद्मनाभ आदि भावि तीर्थकर होंगे। ८४००० वर्ष की गणना - ४२००० वर्ष अवसर्पिणी के पाँचवे-छठे आरे के,
४२००० वर्ष उत्सर्पिणी के १-२ आरे के = ८४००० वर्ष हुए। यहाँ अवसर्पिणी के चतुर्थ आरे के ८९ पक्ष और उत्सर्पिणी के तीसरे आरे के ८९ पक्ष अधिक हैं किंतु अल्प-काल होने से
इसकी अलग से विवक्षा नहीं की। भावी-जिन
जीव १. पद्मनाभ
श्रेणिक सुरदेव
सुपार्श्व (महावीर भगवान् के काका) सुपार्श्व
उदायि (कोणिक पुत्र) स्वयंप्रभ
पोट्टिलक सर्वानुभूति
दृढ़ायु देवश्रुत उदय
शंखश्रावक पेढ़ाल
आनन्द श्रावक पोट्टिल
सुनन्द १०. शतकीर्ति
शतक सुव्रत
देवकी १२. अमम
सत्यकि
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