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________________ प्रवचन-सारोद्धार २०३ ४२ द्वार : - अर्हत् चतुष्क जिणनामा नामजिणा केवलिणो सिवगया य भावजिणा। ठवणजिणा पडिमाओ दव्वजिणा भाविजिणजीवा ॥४५३ ॥ -गाथार्थअरिहंत के ४ निक्षेप-जिनेश्वर का नाम, नामजिन है। केवलज्ञानी और मुक्त जिन भावजिन है। जिनेश्वर देव की प्रतिमा स्थापनाजिन है। जिनेश्वर देव के जीव द्रव्यजिन है। ।४५३ ।।। -विवेचन१. नामजिन २. स्थापनाजिन ३. द्रव्यजिन और ४. भावजिन। • १. तीर्थंकरों के नाम जैसे ऋषभ, अजित आदि “नामजिन" कहलाते हैं। २. अष्टमहाप्रातिहार्यादि समृद्धि से युक्त, केवलज्ञानी जिनेश्वरों की सुवर्ण, रजत, मोती, पाषाण और मणिमय मूर्तियाँ “स्थापनाजिन” कहलाती हैं। भावी तीर्थंकर जैसे श्रेणिक आदि के जीव “द्रव्यजिन" कहलाते हैं। अष्टमहाप्रातिहार्यादि समृद्धि से युक्त, केवलज्ञानी भगवन्त तथा मोक्षपद को प्राप्त हुए अरिहंत भगवन्त “भावजिन" कहलाते हैं । ४५३ ।। |४३ द्वार : - निष्क्रमण तप 3888888886660388 सुमइत्थ निच्चभत्तेण निग्गओ वासुपुज्ज (जिणा) चउत्थेण । पासो मल्लीवि य अट्ठमेण सेसा उ छटेणं ॥४५४ ॥ . -गाथार्थजिनेश्वरों का दीक्षाकालीन तप—सुमतिनाथ प्रभु एकाशन....वासुपूज्यस्वामी चतुर्थभक्त...पार्श्वनाथ, मल्लिनाथ अट्ठम तप तथा शेष तीर्थंकर छट्टतप करके दीक्षित हुए ॥४५४ ।। -विवेचन१. सुमतिनाथ नित्यभक्त २. वासुपूज्य चतुर्थभक्त ३. पार्श्वनाथ अष्टमभक्त ४. मल्लिनाथ अष्टम भक्त ५. शेष २० जिनेश्वरों ने छट्ठभक्त से दीक्षा ग्रहण की थी॥ ४५४ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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